Monday 28 September 2009

ए क्या बोलती तू

ए क्या बोलती तू ... , ओ हरे दुपट्टे वाली .... गाने गाकर नायिका को छेड़ते नायक लोगों का मनोरंजन करने मे कितने सफल रहते हैं पर नि:संदेह समाज की एक गंभीर समस्या जरूर उजागर होती है. 'ईव टीज़िंग' नाम से जाना जाने वाला कुछ मनचले लड़कों की यह करतूत वास्तव में कितनी घातक है, इसका प्रमाण है गत ४ जुलाइ को मुंबई की सौजन्या जाधव द्वारा अपने घर मे आत्महत्या की घटना. स्कूल , कॉलेज जाती लड़कियाँ , ऑफीस जाती या खरीददारी करती महिलाएँ , मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ती , सुबह- शाम पार्क मे टहलती अथवा विदेशों से घूमने आई महिलाएँ हों, किसी ना किसी रूप मे ईव टीज़िंग का शिकार होती रहती हैं. सीटी बजाना , गंदी निगाहों से घूरना, गाने गाना , भद्दी व फूहड़ टिप्पणियों से लेकर शारीरिक स्पर्श और बस से नीचे तक फेंक दिए जाने की घटना देखी गयी है.

ऐसी शर्मनाक घटनाएँ जहाँ छोटी उम्र की लड़कियों के करियर पर असर करती हैं वही दूसरी ओर औरतों के मानस- पटल पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव भी छोड़ती है . पुरुषों के प्रति अविश्वास की भावना भर जाती है कभी- कभी ताउम्र इस त्रासदी से बाहर नही निकल पाती.

आख़िर क्या है कारण? मनोचिकित्सकों का मानना है की इसके पीछे समाज की पितृिसततात्मक व्यवस्था ही प्रमुख रूप से ज़िम्मेवार है . लालन -पालन के तरीके ऐसे हैं कि बालकों के मान मे इस तरह की धारणा बन जाती है कि औरत वर्ग कमजोर है व मनोरंजन के साधन के रूप मे इस्तेमाल करने योग्य है. इसके अलावा यौन शिक्षा की कमी भी प्रमुख कारण है. अश्लील साहित्यों एवं पोर्नोग्राफ़ीकी इंटरनेट पर बेरोक टोक उपलब्धता, मीडिया व फिल्मों मे महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप मे पेश किए जाने का भी महत्वपूर्णयोगदान है.

इस समस्या के समाधान के लिए ज़रूरत है सार्थक कदम उठाने की. सर्वप्रथम परिवार व प्रशासन तन्त्र के भरपूर सहयोगकी. दोषी पाए जाने पर सख्त-से सख्त सज़ा दिए जाने का प्रावधान किया जाना ज़रूरी है. चेन्नई पोलीस द्वारा गठित व्हाइट ब्रिगेड सड़क -छाप मजनूं पर लगाम उठाने की दिशा मे सराहनीय कदम है. शिक्षण - संस्थाओं मे केवल जींस पर प्रतिबंध लगाकर दायित्वों की इतिश्री ना की जाए वरन कुछ प्रभावी कदम उठाए जाएँ. नुक्कड़ नाटकों सभाओं आदि का आयोजन कर समाज मे इसके प्रति जागरूकता फैलने का कम किया जा सकता है. मतलब साफ है किलड़कियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा मे कम किए जाए व उन्हें आत्मसुरक्षा के तरीके सिखाए जाएँ.

तभी सही मायनों मे देश की आधी आबादी प्रतिष्ठापूर्ण अपने जीवन जीने के अधिकार के साथ पूर्ण स्वतंत्रता का सुख महसूस कर सकती है.

8 comments:

  1. विचारणीय आलेख.

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  2. सही और विचा्रणीय आलेख के लिये बधाई और आभार्

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  3. bas do minat ka hi to saara khel hai,aapka svagat hai, bahut badhai

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  4. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.........
    इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं....

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  5. kisi bhi samasya ka samadhan uske karno mein chhipa hota hai. karano ko barikee se aur nishpakshata se dhekhiyee samadhan bhi samaney aa jayega. ye sach hai is sabkey peechhey ptrisatatmk soch hai. sadiyon se chali aa rahi. matrisatatmak samaj ki taraf lotna bhi sambhav nahi. dono ka nished karna hoga. hinsa aur kam ye do pahiye hain jin par jeevan chalta aayaa hai aaj tak. jeevan vikas ke samanantar ye dono pravritiyan bhi jatil se jatitar hoti gayeen. samay aa chuka hai ki in dono prayritiyon ko samja jayyee. ek matr manav jeevan mein sambhavna hai hinsa ko aahinsa mein badlaney ki aur kam ko prem mein badalaney ki. yon pratibhandh aur varjanayeen samasyaa samasyaa ko aur bhi gahrayeengi.

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  6. ---- चुटकी----

    करवा चौथ का
    रखा व्रत,
    कई सौ रूपये
    कर दिए खर्च,
    श्रृंगार में
    उलझी रही,
    घर से भूखा
    चला गया मर्द।

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