पिछले हफ्ते देश की राजधानी दिल्ली के द्वारका इलाके में भावना यादव की हत्या का मुद्दा आज लोकसभा में भी उठा. ऑनर किलिंग को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने और इस विषय पर सरकार और समाज को और गंभीर होने की मांग की गई. २१ वर्षीय भावना की महज अपनी मर्ज़ी से किसी दूसरी जाति के लडके के साथ विवाह कर लेने की वजह से जान ले ली गई । इस हत्या को अंजाम दिया, अपने ही माँ -बाप ने. और तो और उन्हें अपने किये पर शर्मिंदगी भी नहीं।ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, विगत कुछ वर्षों में कई ऐसी खबरें पढने को मिली है. नितीश कटारा , निरुपमा पाठक, आशा सैनी और योगेश , मोनिका कुलदीप , खुशबू ,दीप्ति, हरप्रीत जैसे लोगों को प्रतिष्ठा और मान मर्यादा के नाम पर मार दिया गया । इस तरह की हत्याएँ निसंदेह भारतीय सामजिक व्यवस्था की खामियां उजागर करती है और कई सवाल खड़े करती है. क्या लोकलाज और सम्मान के लिए हत्या जैसे जघन्य अपराध करते हाथ नहीं कांपते ? सजा, दण्ड का भय भी ऐसा करने से नहीं रोक पाता ? क्या भारतीय समाज में एक वयस्क लड़का-लड़की का खुद अपना जीवनसाथी का चुनाव करना अपराध है ? क्या अपनी ज़िन्दगी पर अपना कोई अधिकार नहीं है? और क्या विचार -विमर्श कर मामले को खुशनुमा मोड़ नहीं दिया जा सकता था? इस तरह की हत्याओं को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है.
बेशक बच्चों और उनके माता-पिता के बीच संबंधों को लेकर भी निराशाजनक स्थिति है. परस्पर प्रेम और विश्वास अपनी मान-मर्यादा के आगे गौण हो जाते हैं . दुखद है, विकास की दिशा में अग्रसर इस देश में किसी परंपरा को तोड़ने के एवज में या तो मौत मिलती है अन्यथा अपनी मर्ज़ी को दरकिनार कर अपने तथाकथित हितैषियों द्वारा चुने गए जीवनसाथी के संग ज़िन्दगी बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है।अपनी मर्ज़ी अपने बच्चों पर थोपने की इस परंपरा से हर तरह से नुकसान की ही उम्मीद की जा सकती है.
छोटे-छोटे शहरों से लेकर महानगरों, शिक्षित या अशिक्षित, उच्च से लेकर निम्न आय वर्गीय परिवारों तक में ऐसे विचार और हत्यारों के साथ हमदर्दी रखने वालों की कमी नहीं है. दुर्भाग्यवश देश की कई पंचायतें भी ऐसी हत्याओं के पक्ष में बयान जारी करती रहती हैं। नतीजतन, यह मामला देश की कानून व्यवस्था के सामने भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है ।अंदाज़न १००० से अधिक हत्याएं हर साल झूठी प्रतिष्ठा के नाम पर कर दी जाती हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार इज्जत के नाम पर दुनिया भर में हर पांचवीं हत्या भारत में होती है. तमाम कोशिशों के बावजूद भी इन पर रोक नहीं लगाई जा सकी है.
शाइनिंग इंडिया नारे को झुठलाती इन घटनाओं पर लगाम लगाना निहायत जरूरी है. २१ वीं सदी में पता नहीं हम अपनी किस संस्कृति को सहेजने में लगे हैं? अगर सच में हमें अपनी परम्पराओं पर गर्व महसूस करना है तब इन कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। समाज में परिवर्तन होते रहते है। सती प्रथा, बाल -विवाह , छूआछूत जैसी कुरीतियों को मिटाने में हमें कामयाबी मिली है. जरूरत है, दकियानूसी विचारों को तिलांजलि देकर हम नई सोच के साथ आगे बढ़ें। युवा पीढ़ी को गुजरे जमाने के तौर-तरीकों से चलने को मजबूर न कर थोड़ी स्वतंत्रता देकर बड़प्पन दिखाएं. अभिभावकों का खुद को बदलना, अपने बच्चों के साथ वक्त बिताना, उनकी बातें सुनना, उनकी तमाम समस्याओं का समाधान करना लाभदायक साबित हो सकता है. सरकार भी इसकी भयावहता को समझते हुए ऑनर किलिंग के मामलों के लिए एक अलग कानून बनाने पर विचार कर रही है.
बेशक बच्चों और उनके माता-पिता के बीच संबंधों को लेकर भी निराशाजनक स्थिति है. परस्पर प्रेम और विश्वास अपनी मान-मर्यादा के आगे गौण हो जाते हैं . दुखद है, विकास की दिशा में अग्रसर इस देश में किसी परंपरा को तोड़ने के एवज में या तो मौत मिलती है अन्यथा अपनी मर्ज़ी को दरकिनार कर अपने तथाकथित हितैषियों द्वारा चुने गए जीवनसाथी के संग ज़िन्दगी बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है।अपनी मर्ज़ी अपने बच्चों पर थोपने की इस परंपरा से हर तरह से नुकसान की ही उम्मीद की जा सकती है.
छोटे-छोटे शहरों से लेकर महानगरों, शिक्षित या अशिक्षित, उच्च से लेकर निम्न आय वर्गीय परिवारों तक में ऐसे विचार और हत्यारों के साथ हमदर्दी रखने वालों की कमी नहीं है. दुर्भाग्यवश देश की कई पंचायतें भी ऐसी हत्याओं के पक्ष में बयान जारी करती रहती हैं। नतीजतन, यह मामला देश की कानून व्यवस्था के सामने भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है ।अंदाज़न १००० से अधिक हत्याएं हर साल झूठी प्रतिष्ठा के नाम पर कर दी जाती हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार इज्जत के नाम पर दुनिया भर में हर पांचवीं हत्या भारत में होती है. तमाम कोशिशों के बावजूद भी इन पर रोक नहीं लगाई जा सकी है.
शाइनिंग इंडिया नारे को झुठलाती इन घटनाओं पर लगाम लगाना निहायत जरूरी है. २१ वीं सदी में पता नहीं हम अपनी किस संस्कृति को सहेजने में लगे हैं? अगर सच में हमें अपनी परम्पराओं पर गर्व महसूस करना है तब इन कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। समाज में परिवर्तन होते रहते है। सती प्रथा, बाल -विवाह , छूआछूत जैसी कुरीतियों को मिटाने में हमें कामयाबी मिली है. जरूरत है, दकियानूसी विचारों को तिलांजलि देकर हम नई सोच के साथ आगे बढ़ें। युवा पीढ़ी को गुजरे जमाने के तौर-तरीकों से चलने को मजबूर न कर थोड़ी स्वतंत्रता देकर बड़प्पन दिखाएं. अभिभावकों का खुद को बदलना, अपने बच्चों के साथ वक्त बिताना, उनकी बातें सुनना, उनकी तमाम समस्याओं का समाधान करना लाभदायक साबित हो सकता है. सरकार भी इसकी भयावहता को समझते हुए ऑनर किलिंग के मामलों के लिए एक अलग कानून बनाने पर विचार कर रही है.
बहुत ही अच्छा लिखते हो जनाब लगे रहिये (Keep going so Inspirational and motivational)
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