Thursday 22 February 2018

सफर कुछ अलग-सा


कागज की नाव बनाकर उसे बारिश के पानी में छोडना और तेजी से ओझल होते देखना मन में जैसी ख़ुशी का संचार करता था, वैसी ख़ुशी मोटर बोट खिलौने में कहाँ मिलती थी  ? कुछ ऐसे ही उम्मीदों के साथ पिछले रविवार हमने सेलिंग बोट की  राइड लेने की योजना बनाई. पहले से निर्धारित समय पर हमलोग गेटवे ऑफ़ इंडिया से सटे  जेटी नंबर ५ पर पहुँच गए. वहां से हमें ट्रांसफर बोट के माध्यम से सेलिंग बोट तक ले जाया गया.  सेलिंग बोट को किनारे तक लाने की अनुमति नहीं है. जाते -जाते हमें कई अन्य सेलिंग बोट, छोटे- बड़े मोटर बोट और प्राइवेट याच भी दिखाई दे रहे थे, कुछ पर्यटकों को ले जाते और कुछ समुन्दर के किनारे एंकर के सहारे पार्क किये हुए और हवा के संग-संग, आगे -पीछे हिलते- डुलते अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते. एलीफैंटा की गुफाओं और अलीबाग बीच भी यहाँ से जाया जा सकता है.
अब हमलोग  तैयार थे, अरब सागर के नीले पानी की अनोखी दुनिया को करीब से महसूस करने के लिए और इस छोटी मगर यादगार यात्रा को सफल बनाया नाव के चालक और उनके एक सहयोगी ने. चंद मिनट ही  काफी थे यह समझने में कि नाव को चलाने में कितने धैर्य और अनुभव की दरकार होती है !खड़े नावों या जहाजों के बीच से नाव के लिए रास्ता बनाना, नावों की दिशा बदलना या हवा का रूख समझ कर सेल को एक तरफ से दूसरी तरफ करना आसान काम नहीं है!
इंजीनियरिंग की सबसे पुरानी शाखा है, नौका निर्माण। हल्ल या पतवार, बड़ा-सा सेल, सेल और बूम को थामे एक बड़ा सा डंडा या मास्ट, नाव को  दिशा देने केलिए ट्रिलर, चप्पू, रस्सियां इत्यादि नाव के कुछ मुख्य भाग   हैं.
 हवा अच्छी चल रही थी और  उसके सहारे नाव भी अच्छी गति से आगे बढ़ी जा रही थी। दूर सागर और आसमान आपस में एक दूसरे में समाते हुए दिख रहे थे,जानते हुए भी यह एक भ्रम है,एकबारगी सच प्रतीत हो रहा था. नाविक ने बताया, जब हवा कम रहती है तब नाव इतनी तेजी से आगे नहीं बढती, और भी कम होने पर चप्पू चलाकर नाव को खेना पड़ता है, जो काफी मेहनत भरा काम है.  कभी- कभी  हवा के न रहने पर नाव के कहीं बीच में भी फँस जाने का डर रहता है, तब अन्य उपाय करने पड़ते हैं. डरने की बात नहीं,ऐसा बहुत कम ही होता है.☺ पर हाँ, डाल्फिन के दर्शन के मामले में किस्मत ने हमारा साथ नहीं दिया। सी गल और अन्य पक्षी अपना आहार ढूंढते और मछलियों का पीछा करते जरूर दिखे, और पानी में जगह-जगह तैरते नावों के लिए लगाए गए मार्कर पर कुछ पक्षियों को  आराम फरमाते और उड़ना छोड़ उनके सहारे ही किनारे का रूख करते देखना मजेदार लगा.
नाविक और उनके सहयोगी ने हमारे द्वारा पूछे गए लगभग सभी सवालों के जवाब दिए. सफर के दौरान दिखाई देते सभी नेवी के जहाज, ऑयल वेल, नेवी अधिकृत द्वीपों, लाइट हॉउस, इंडियन नेवी द्वारा एक जहाज को रेस्टोरेंट के रूप में परिवर्तित करने के बारे में भी हमें बताया। चलते-चलते हमलोग एक फिशिंग बोट  के करीब पहुंचे। उन्होंने बताया कि कुछ लोग रोज शाम फिशिंग बोट से मछलियों को पकड़ने के अपने अभियान पर निकलते हैं और सुबह-सुबह पकड़ी मछलियों को तट पर दिख रहे सेसॉन डॉक पर पहुंचा देने के बाद इनका काम खत्म होता है . फिशिंग बोट पर कोली समुदाय की आराध्य देवी, मुम्बा आई का भी झंडा लगा दिखा। ज्यादातर कोली समुदाय के लोग इस धंधे से जुड़े हैं.

हवा के रूख को देखते हुए सेल को बाईं या दाई और करना पड़ता है और इस बाबत नाविक के निर्देश मिलने पर नाव में सवार हमें कई दफा सर झुकाना पड़ा. यह थोड़ी असुविधाजनक लग सकती है पर यदि सेलिंग बोट पर बैठकर समुद्र की खूबसूरती का मजा लेना है, तब अलर्ट रहना भी उतना ही जरूरी है!

प्राचीनकाल से लोग सागर की यात्रा करने और इसके रहस्यों को जानने की कोशिश में लगे हुए हैं. जल जंतुओं की एक रहस्यमयी दुनिया, ब्लू व्हेल से लेकर प्लैंकटन तक. पता नहीं और कितने अद्भुत जीव-जंतु, दुर्लभ पौधे और भांति -भांति के बैक्टीरिया इन महासागरों के गर्भ में मौजूद हैं!

कितनी सारे रोमांचक किस्सों को याद दिलाता है यह दूर तक फैला नीले पानी का अम्बार! दूर से आते जहाज के मास्ट के ही हमेशा सबसे पहले देखे जाने के बाद ही इंसानों ने सोचना शुरू किया कि कहीं दुनिया समतल न होकर गोल तो नहीं ! सिंदबाद की रोमांचक कहानियाँ हो या अर्नेस्ट शैकलटन की सन १९०७ की साहसिक नीमरोड अभियान की साहस से भरी सच्ची घटना, समुद्र के बीच में जिंदगी और मौत के बीच गुजारे गए कई दिन, सब ऐसे ही किसी सागर से ही तो जुडी है. वास्कोडिगामा, कोलंबस, मार्को पोलो की समुद्री यात्राओं के बारे में किसने न सुना होगा? विभिन्न सभ्यता-संस्कृतियों को जानने -समझने से लेकर उपनिवेशों की स्थापना के किस्से इन यात्राओं से जुड़े हैं.

हमने शाम का वक्त यात्रा के लिये चुना था ताकि सनसेट का भी नज़ारा देख सकें।  हमारी नाव वापस लौटने के लिए मुड़ चुकी थी. नीले पानी पर सूरज की किरणों से बनी सुनहरी पट्टियों हमारे नाव का पीछा करती दिख रही थी. प्रकृति के इस अद्भुत रंग-संयोजन का कोई मुकाबला है क्या? हम मुंबई के करीब पहुँच रहे थे, इमारतें कुछ ज्यादा स्पष्ट दिखाई देने लगी थी. और देखते ही देखते सूरज भी चल पड़ा था धरती के दूसरे हिस्से को प्रकाशमान करने और हम २ घंटे की थोड़ी अलग और यादगार यात्रा कर वापस अपनी राह!

2 comments:

  1. मुम्बई में भी वोट द्वारा समुद्र की सैर की जाती है, इसका पता आज ही लगा, अच्छा लगा संस्मरण।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वीनस गर्ल आज भी जीवित है दिलों में : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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