Friday 11 May 2018

किताबें और हम


किताबें हमेशा से ही हमारी संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा रही हैं। भले ही किताबों का स्वरुप कुछ अलग था पर क्ले टैबलेट्स, लौह पत्रों, चर्म पत्र, ताड़ पत्रों, मिट्टी की पटि्टयों, भोजपत्रों,पेपाइरस आदि पर उकेरे चिन्ह या शब्द इस बात का प्रमाण हैं कि हर युग में इंसानों ने अपने विचार,ज्ञान और अनुभवों को लिखकर संरक्षित करने और भावी पीढ़ी तक हस्तांतरण को महत्वपूर्ण माना है.


किताबें हैं क्या ? किसी के लिए ज्ञान का भण्डार, देश-दुनिया के आश्चर्यजनक रहस्यों और महत्वपूर्ण सूचनाओं का संग्रह, किसी की लिए मानसिक तनाव को दूर करने और मनोरंजन का साधन और किसी के लिए अकेलेपन का साथी और एक सच्चा दोस्त। किताबें दुनिया भर की जानकारियाँ अपने पन्नों में समेटे कभी शिक्षक बन जाती है, कभी पिता के रूप में कहानियां कहकर अच्छे -बुरे का भेद करना सिखाती है, वास्तविक दुनिया से हमारा परिचय कराती है और कभी हमारी भावनात्मक और बौद्धिक जरूरतों को पूरा कर एक माता की भी भूमिका निभाती है. दूसरों के विचारों से अवगत करा हमारी कल्पनाशीलता में नए पंख लगाती है, हमारी सोच में विस्तार करती है. निसंदेह मानसिक स्तर पर हमें और अधिक परिपक्व बनाकर एक बेहतर इंसान बनाने का बेहतरीन माध्यम हैं किताबें। फिर क्यों न, किताबों से दोस्ती कर ली जाए ?

अधिक-से-अधिक लोगों को किताबों से जोड़ने और पढ़ने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से २३ अप्रैल को . यूनेस्को(यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन) द्वारा हरेक वर्ष विश्व पुस्तक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है. भारत में भी केन्द्रीय संस्थानों, पुस्तकालयों, विद्यालयों और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को अध्ययन के प्रति जागरूक करने की दिशा में प्रयास किये जाते हैं. अलग-अलग शहरों में आयोजित किये जाने वाले पुस्तक मेलों का उद्देश्य भी किताबों के प्रति लोगों की रूचि बढ़ाना ही है. हर आयु वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर लाखों की संख्या में पुस्तकें प्रदर्शन के लिए रखी जाती है। कहानियाँ, कवितायेँ, नाटक, उपन्यास, व्यंग्य, चित्रों वाली किताबें हों अथवा ज्ञान-विज्ञान के अद्भुत संसार से परिचय कराती किताबें, हर विषय पर किताबें लिखी जाती हैं, बस जरूरत है, अपनी पसंद के हिसाब से किसी किताब के चुनने का.

उल्लेखनीय है, किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी इच्छानुसार हर पुस्तक खरीद पाना संभव नहीं है. इस समस्या का आसान- सा समाधान है, पुस्तकालय। पुस्तकालय का सदस्य बन कर वहां संग्रहित पुस्तकों, फ़िल्मों, पत्रपत्रिकाओं, मानचित्र, हस्तलिखित ग्रंथ, ग्रामोफोन रेकार्ड, ई-बुक्स एवं अन्य पठनीय सामग्रियों का लाभ उठाया जा सकता है. पर क्या सचमुच पुस्तक पढ़ने की चाह रखने वालों के लिए हम उनकी इच्छा पूरी कर पाने में सक्षम हैं? गौरतलब है, सूचनाओं को अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाने की दिशा में कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ लाइब्रेरी एसोसिएशन एंड इंस्टीच्यूशन द्वारा तय पैमाने के मुताबिक हर ३००० की जनसँख्या पर एक सार्वजानिक पुस्तकालय होनी चाहिए। इस लिहाज से भारत की कुल जनसँख्या के हिसाब से यहाँ तक़रीबन ४ लाख सार्वजनिक पुस्तकालयों की आवश्यकता है जबकि लगभग ६०००० ही पुस्तकालयों का होना निराशा जगाता है. विद्यालयों खासकर सरकारी विद्यालयों में पुस्तकालयों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. बहुधा पुस्तकालय जैसी कोई व्यवस्था रहती नहीं हैं, और अगर रहती भी है तो कहीं कोने में पड़ी एक छोटी- सी अलमारी में कुछ किताबें 'पुस्तकें अनमोल धरोहर हैं' की तर्ज़ पर बंद रखी जाती हैं. विडम्बना यह कि मेरी प्रिय पुस्तक, मेरे प्रिय लेखक या पुस्तकालय का महत्व जैसे विषयों पर लेख बच्चे निबंध की किताबों से रट्टा मारकर हर साल परीक्षाओं मे लिख आते हैं. कक्षा में बैठाकर और टेक्स्टबुक रटाकर शिक्षा के असली मकसद को प्राप्त करना असंभव है। किताबें पढ़ने से शब्द ज्ञान और विश्लेषण क्षमता में विस्तार तो होगा ही साथ ही पढ़ने की क्रिया को और भी रोचक बनाया जा सकता है.

किताबों की उपलब्धता हरेक के लिए आसान और सुनिश्चित करने के लिए पुस्तकालयों के निर्माण को हमारी प्राथमिकताओं में शामिल करना होगा। चुनौती न केवल ज्यादा संख्या में पुस्तकालयों को बनाने की है वरन पुस्तकालयों का अधिक-से-अधिक किताबों और अन्य सामग्रियों से समृद्ध और लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकने में सक्षम होना भी जरूरी है. इसी मद्देनजर सन १९७२ में भारत के सांस्कृतिक विभाग द्वारा राजा राममोहन रॉय फॉउंडेशन की स्थापना की गयी. इसके अलावा भारत सरकार ने पुस्‍तकालय सेक्‍टर के विकास के लिए लम्‍बी अवधि की योजनाएं और रणनीतियां तैयार करने के लिये सन २०१२ में एक उच्‍च स्‍तरीय समिति 'राष्‍ट्रीय पुस्‍तकालय मिशन'(NML) का भी गठन किया है जिसका उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय भारतीय वर्चुअल पुस्‍तकालय की स्‍थापना, मॉडल पुस्‍तकालयों की स्‍थापना, पुस्‍तकालयों का गुणात्‍मक / मात्रात्‍मक सर्वेक्षण तथा क्षमता निर्माण करना है। एशिया के सबसे बड़े साहित्यिक उत्‍सव-जयपुर साहित्‍य उत्‍सव का प्रत्‍येक वर्ष जनवरी माह में जयपुर में आयोजित किया जाना भी पुस्तकों को लेकर लोगों को जागरूक बनाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है. इस सम्बन्ध में पुस्तकालय अधिनियम लागू करना भी उल्लेखनीय है जिसके तहत राज्य सरकार की सभी शिक्षण संस्थानों चाहे सरकारी हो या गैर-सरकारी, प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च-शिक्षा तक के संस्थानों में पुस्तकालय का होना अनिवार्य कर दिया गया है. हालांकि अभी भी भारत के केवल १९ राज्यों में ही पुस्तकालय अधिनियम पारित किया जा सका है और उसपर भी कुछ राज्यों में यह अधिनियम अभी कुछ साल पहले ही लागू किया गया है. आशा है, जल्द-से -जल्द यह व्यवस्था देश के अन्य राज्यों में भी लागू कर दी जायेगी।

बाल किताबों को प्रकाशित करने वाली संस्था, प्रथम बुक्स का 'हर बच्चे के हाथ में किताब' योजना के तहत भारत की विभिन्न भाषाओँ में किताबें प्रकशित कर कम कीमत तक बच्चों तक पहुंचाने की कोशिश सराहनीय है. ' डोनेट अ बुक' या 'मिस्ड कॉल दो और कहानी सुनो ' जैसे कैम्पेन बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के मकसद से चलायी गयी है. ऐसे कई एनजीओ हैं जो गांवों में बच्चों को शिक्षित करने के कार्य में लगे हुए हैं और कई पुस्तकालय इन ट्रस्ट व संगठनों द्वारा सुदूर इलाकों में चलाए जा रहे हैं.

कहा जा सकता है, ज्ञान आधारित समाज का निर्माण किया जाना किसी राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है और इस लक्ष्य को हासिल करने का अति महत्वपूर्ण साधन है, किताबें।

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