Tuesday 19 June 2018

असल्फा :चल रंग दे


दो दिनों तक कभी तेज, कभी छिटपुट बारिश के बाद आज मौसम कुछ साफ़ है, आज सुबह धूप खिली थी. खिड़की के बाहर देखती हूँ, दूर तक जहाँ तक नजर जा सके. घाटकोपर पहाड़ी की ढलान दिखती है, और दीखते हैं उसी ढलान पे बने कई छोटे-छोटे, सटे-सटे से घर और कुछ घरों की छतों को बारिश से लड़ने की ताकत देते नीले तिरपाल शीट. नजर पड़ती है, कहीं से निकलते धुएँ पर, शायद कोई छोटा कारखाना है! सामने एक मस्जिद और कुछ ही दूरी पर एक मंदिर की दीवार. यह मुंबई के कई बड़े स्लमों में से एक असल्फा स्लम का एक छोटा- सा हिस्सा है, यक़ीनन वह हिस्सा नहीं जिसपर  मेट्रो में सफर करने वाले यात्रियों की नजर पड़ती है और जो इटली के अमाल्फि कोस्ट पर बसे पोसितानो शहर की याद दिलाता है. तंग गलियों, छोटे अँधेरे घरों, नालों और दूर -दूर तक फैली गन्दगी से पहचाने जाने वाले स्लम से बिलकुल अलग जिनकी दीवारों पर इंद्रधनुषी रंग बिखेरे गए हैं. बस्ती की बाहरी दीवारों पर अलग-अलग तरह के डिजाइन बनाए गए हैं. बस्तियों की १७५ दीवारें  ७५० लोगों, ४०० लीटर पेंट और तक़रीबन ६ दिनों की मदद से अब बदरंग नहीं रही हैं.

स्लम के किसी एक विशेष हिस्से का मेकओवर कर इन बस्तियों के प्रति आम लोगों की धारणा बदलने और इन बस्तियों के निवासियों के जीवन में सकारात्मकता के रंग भर सकने में कितनी कामयाबी मिलेगी ? और, आम लोगों की धारणा बदलने से क्या स्लम में रहने वाले लोगों की समस्याएं ख़त्म या कम हो जायेंगी?  तो क्या कुछ लोगों का कहना सही है कि इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य मेट्रो में सफर करने वालों के लिए बस यह एक खुबसूरत नज़ारे की रचना है? क्या सचमुच रंग रोगन से बस्ती को कोई लाभ हुआ है या बस लोगों की जिज्ञासा इन बस्तियों के प्रति बढ़ गयी है? तो क्या यह 'स्लम टूरिज्म ' जिसे कुछ लोग 'पोवर्टी पोर्न' की भी संज्ञा देते हैं, का एक नया गंतव्य बनने वाला है?

स्लम के मेकओवर को अंजाम देने वालों का उद्देश्य बस्ती को नई पहचान दिलाना और फिर इसके बाद इसकी समस्याओं को सामने लाना भी है. आशा है, वे सफल होंगे।

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