Wednesday 5 December 2018

डॉ भाऊ दाजी लाड संग्रहालय, नवरत्न प्रदर्शनी :एक अनोखा अनुभव


भारत की आर्थिक राजधानी है, मुंबई। भारत की सबसे अधिक आबादी वाला यह शहर विभिन्न समाजों और संस्कृतियों के मिश्रण और बहुभाषी तथा बहुआयामी जीवन शैली के लिए भी जाना जाता है। और भारत ही क्या, वैश्विक आर्थिक स्तर पर धाक जमा लेने की वजह से ही सन २००८ में इस महानगर को 'अल्फा वर्ल्ड सिटी' का भी दर्ज़ा मिल गया है।मूल रूप से सात अलग -अलग द्वीपों में बंटा यह नगर पांच शताब्दियों के लम्बे समय में एक विशाल औद्योगिक शहर में परिवर्तित हो गया है। इस परिवर्तन की प्रक्रिया को थोड़ा और बारीकी से समझने की चाहत अगर आप में है, तब आप रूख कर सकते हैं मुंबई के भायखला स्थित 'डॉ भाऊ  दाजी लाड संग्रहालय' की तरफ। भारत के श्रेष्ठ संग्रहालयों में शामिल इस संग्रहालय में भारतीय इतिहास और विशेषतः १९वीं और २०वीं शताब्दी के मुंबई की जीवन शैली की जानकारी बखूबी मिलती है। इस संग्रहालय की स्थापना सन १८७२ में हुई थी और तब उसे 'विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय' नाम से जाना जाता था परन्तु सन १९७५ में इस संग्रहालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मुंबई के एक प्रमुख चिकित्सक, इतिहासकार और समाज सेवक के नाम पर 'डॉ भाऊ दाजी लाड संग्रहालय' कर दिया गया. यह संग्रहालय वर्षों से मुंबई की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और संभाल कर रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विशेष रूप से वर्ष २००८ में संग्रहालय के नवीनीकरण के बाद विभिन्न तरह की प्रदर्शनियों और कार्यशालाओं का नियमित आयोजन इस संग्रहालय को आम लोगों के मध्य लोकप्रिय बनाने में मददगार साबित हुआ है और यह कहना गलत नहीं होगा कि यह स्थान मुंबई के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल हो गया है। संग्रहालय ने लगातार अपने संग्रह को बढ़ाने की दिशा में भी काम किया है. गूगल की सहायता से संग्रहालय के वर्चुअल टूर की भी व्यवस्था की गई है।


पैलेडियन डिज़ाइन में बनी यह दोमंजिला इमारत जितनी बाहर से आकर्षित करती है, उतनी ही भव्य अंदर से भी है। चमकते टर्न्सटाइल से होकर एक बड़े हॉल में प्रवेश करते ही दिखाई देते हैं,सुन्दर-से अलंकृत खम्भे, छत पर स्टैंन्सिल से बनी डिज़ाइन और सबसे अहम कांच के बड़े-बड़े डब्बे में बंद कई तरह की खूबसूरत कलाकृतियां मसलन चांदी और मिट्टी के बर्तन, हाथी दांत से बनी कलाकृतियां और उनपर की गई नक्काशी, लाख से बने सामान या फिर पेंटिंग और पुराने हथियार। सीढ़ियों पर लगे रंगीन मिन्टन टाइल्स पर नजर ठिठक ही जाती है और कुछ सीढ़ियां चढ़ते ही सामने दिखाई देती है डॉ भाऊ दाजी लाड जी की एक बड़ी तस्वीर।

बढती जरूरतों और तकनीकी प्रगति के साथ नौकाओं के बदलते स्वरुप, कपड़ा मिलों, विभिन्न आवास परिसरों, पारम्परिक उद्योगों और अलग -अलग वेशभूषाओं की जानकारियाँ देते मॉडल को पहली मंजिल पर देखा जा सकता है. जैसे मुंबई के मालाबार हिल्स स्थित 'टावर ऑफ़ साइलेंस' का संग्रहालय में प्रदर्शित डायोरामा और लिखित विवरण पारसी समुदाय द्वारा अंतिम संस्कार के लिए अपनाने जाने वाली विधि की विस्तृत जानकारी देता है। मुंबई की सात द्वीपों से एक विशाल औद्योगिक शहर में बदलने की कहानी कहते पुराने मानचित्र, तस्वीरें, पांडुलिपियों और दुर्लभ किताबें यहाँ देखी जा सकती हैं। यथा १८वीं शताब्दी में जॉन हेनरी ग्रोस द्वारा वाटरकलर से बनाये गए तत्कालीन शहर के नक़्शे 'प्लान ऑफ़ बॉम्बे' या फिर सिटी ऑफ़ बॉम्बे इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट द्वारा निर्मित वर्ली उपनगर के दो मॉडल्स द्वारा इस शहर के शुरूआती गठन की प्रक्रिया को समझा जा सकता है। हेप्टेनेशिया' अर्थात 'सात द्वीपों का समूह', मुंबई शहर का अतिप्राचीन ग्रीक नाम है जिसका उल्लेख यूनानी खगोलविद और भूगोलवेत्ता टॉलेमी के लेखन में है, कुछ ऐसी ही जानकारियों और तक़रीबन ३५०० कलाकृतियां इतिहास को समझने में हमारी मदद करती है।


साथ ही, यहाँ समय -समय पर लगने वाली प्रदर्शनियाँ, विशेष कार्यक्रम तथा बच्‍चों के लिए लगी कार्यशालाएं भी लोगों द्वारा खूब पसंद की जाती हैं। पिछले महीने दिल्ली आर्ट गैलरी (DAG) के सौजन्य से संग्रहालय में 'नवरत्न -नाइन जेम्स ' नामक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। 'नवरत्न' नाम से प्रसिद्ध नौ कलाकारों की कलाकृतियों की प्रदर्शनी संग्रहालय के कमलनारायण बजाज दीर्घा में लगाई गयी थी।यहाँ बता दें, भारत सरकार द्वारा पारित ऐंटिक्विटीज ऐंड आर्ट ट्रेजर्स ऐक्ट, 1972 द्वारा भारत के नौ कलाकारों की कलाकृतियों को 'नेशनल आर्ट ट्रेजर्स' का दर्ज़ा दिया गया था. राजा रवि वर्मा, अमृता शेरगिल, निकोलस रोएरिक , गगनेन्द्रनाथ टैगोर, जैमिनी रॉय, अवनीन्द्रनाथ टैगोर, नन्द लाल बोस, रवींद्रनाथ टैगोर और सैलोज मुख़र्जी जैसे दिग्गज कलाकारों के चित्रों से सजी प्रदर्शनी ने कलाकारों द्वारा प्रयोग में लाये गए भिन्न-भिन्न माध्यमों और पेंटिंग के विषयों से भी अवगत कराया।जैसा कि प्रदर्शनी के सम्बन्ध में जानकारी दी गयी थी, कलाकृतियों को देखकर बेशक महसूस किया जा सका कि कैसे पश्चिमी चित्रकला शैली से आरम्भ कर भारतीय कला शैली को एक अलग पहचान देकर उसे ऊंचाइयों तक ले जाने का बीड़ा इन कलाकारों ने उठाया था ।ये कलाकार भारतीय कला-परंपरा को भारत के अपने इतिहास और पौराणिक कथाओं के सन्दर्भ में मोड़ने से जरा भी विचलित नहीं हुए और साथ -साथ इन्हें भारतीय दर्शकों के बीच मान्य बनाने का भी काम किया।

बेशक इनमें रंगों और लकीरों का अद्भुत संयोजन तो है ही, कई दशकों के दरम्यान बने इन पेंटिंग्स के माध्यम से भिन्न -भिन्न समयों में प्रचलित भारतीय जीवन शैली के भी दर्शन कर सकना संभव हो सका । प्राकृतिक सुंदरता हो अथवा प्रकृति और इंसानों के आपसी सम्बन्ध, तत्कालीन ग्रामीण समाज एवं जीवन शैली हो या धार्मिक भावनायें हों , या फिर सामजिक और धार्मिक कुरीतियां पर प्रहार हो, माँ और बच्चे के मध्य प्यारे सम्बन्ध से लेकर भारतीय महिलाओं के वास्तवकि स्थितियों को पेंटिंग के विषय के रूप में चुना गया. इतना ही नहीं, इन पेंटिंग्स के जरिये भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के विभिन्न चरणों को भी बखूबी दर्शाया गया है। नन्द लाल बोस द्वारा बनाये गए दांडी यात्रा का चित्र या अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित भारत माता की एक खास इमेज से उत्पन जोश का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं!

राजा रवि वर्मा ने कई पौराणिक कथाओं और उनके पात्रों के जीवन को अपने कैनवास पर उतारा। सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, राधा या कृष्ण की ज्यादातर तस्वीरें राजा रवि वर्मा की कल्पनाशक्ति की ही उपज हैं। अमृता शेरगिल का अपनी पेंटिंग्स के लिए पेरिस से लौटकर अजंता के भित्तिचित्रों से ली गयी प्रेरणा यह साबित करती है कि अंततः उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंग गई। जामिनि रॉय द्वारा बाद के वर्षों में बनायी गई पेंटिंग्स पर भारतीय लोक कला और शिल्प परम्पराओं से ली गयी प्रेरणा साफ़ झलकती है। सपाट रंगों का चुनाव और किनारे पर की गयी सजावट इस बात की पुष्टि भी करती दीख रही थी।

प्रदर्शन में लगी अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाई गयी मुग़ल शैली की पेंटिंग उनके द्वारा पश्चिमी चित्रकला शैली के प्रभाव को कम कर भारतीय शैली को विकसित करने की पुरजोर कोशिश की मिशाल है. निकोलस रोयरिक के नग्गर की पहाड़ियों में १९ साल तक बसने और वहां की बनाई गए खूबसूरत पेंटिंग्स भी यही इशारा करती दिख रही थीं। हर पेंटिंग के नीचे कलाकारों से जुडी कई ऐसी जानकारियां इस प्रदर्शनी को बहुत ही रोचक बनाये हुई थी, जैसे भारतीय संविधान की प्रथम कॉपी के पन्नों में नन्द लाल बोस द्वारा हाथों से रंग भरना या फिर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्ही के द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सभाओं के पोस्टर बनाया जाना इत्यादि। इन कलाकारों द्वारा लिखी गयी और इनके बारे में लिखी कुछ किताबें भी इस प्रदर्शनी की शोभा बढ़ा रही थी। इन कलाकारों के कुछ निजी सामान और हस्तलिखित पत्र भी दर्शन के लिए रखे गए थे।
कला कालजयी होती है! सच है, आज भी ये पेंटिंग्स दशकों बाद उतनी ही प्रासंगिक हैं।


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