लगभग २ वर्षों से ब्लागवाणी नियमित रूप से पढ़ती आ रही हूँ । कितनी बार कोशिश की कुछ लिखा भी जाए , पर असफल ।कुछ अज्ञात सा भय घेरे था ।अब इतनी बड़ी लेखिका तो हूँ नहीं कि
राईटर'स ब्लाक की शिकार हो जाऊँ ।तब
क्या है परेशानी? अंतर्जाल पर खोज बीन करने के उपरांत बात साफ़ हुई कि बहुत ही कॉमन सी समस्या है ये। तो क्या किया जाए? पहले जानते हैं कि आख़िर क्या हमें लिखने से रोकती है?
असफल होने का भय , रचनात्मक न बन पाने का डर, मूर्ख समझे जाने का अनजाना डर, आलोचना का डर आदि वजहों से लेखन क्षेत्र से दूर ही रहने में अपनी भलाई समझते हैं . मान लेते हैं कि बस समय और मेहनत की बर्बादी है. हमसे तो कुछ न होगा, क्या लिखेंगे, कुछ खास विषय भी नहीं है,
लिखने की ईच्छा के बावजूद ऐसे बहाने भी ख़ुद को दे डालते हैं । और तो और बहुत- से लोग सफलता से भी डर की वजह से लिख नहीं पाते।
सबसे पहले ज़रूरत है कि पहचाना जाए कि असल में मेरी समस्या क्या है? समस्या का सामना कर ही समस्या से निजात पाया जा सकता है. जहाँ तक आलोचना की बात है तो सबको मालूम है कि दुनिया के सारे महान लेखकों को कभी न कभी आलोचना का शिकार होना ही पड़ा है। अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में कैसी असफलता ? कैसी रचनात्मकता की ज़रूरत है ? कोशिश ही न की जाए तब सफलता की क्या उम्मीद की जा सकती है?आपने हरिवंश राय बच्चन जी की कविता तो पढ़ी ही होगी
"कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती" । और फिर मार्गदर्शन के लिए अनुभवी चिट्ठाकारों की कमी भी नहीं ।
तो बस उठाइये कलम मेरा मतलब है कीबोर्ड पर दबाइए उँगलियाँ और हो जाइये शुरू . लेखक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कर हिन्दी ब्लॉग जगत को और भी समृद्ध बनायें।
-इस ब्लॉग के माध्यम से आपका ज्यादा समय न लेते हुए जैसा की नाम से ही स्पष्ट है , अपने अनुभवों, विचारों को आपलोगों तक पहुंचाने की कोशिश करूंगी ।