Thursday 23 August 2018

बाल कहानी: द डे द क्रेयॉन्स क्विट

बाल कहानी: द डे द क्रेयॉन्स क्विट

कहानियां सुनने-सुनाने का इतिहास बहुत ही पुराना है. बस ज़िक्र हो कहानियों की और मन कल्पना के अथाह सागर में डुबकी लगाने को तत्पर हो जाता है. खासकर बच्चों की बात करें, उनकी आँखों में आई चमक को देखकर कहानियों के महत्व को समझा जा सकता है. कहानियों अपने विभिन्न पात्रों चाहे चाँद -सितारे हों या उमड़ते -घुमड़ते बादल, गुड्डे -गुड़िया या नन्ही चिड़िया, पेड़ या पर्वत, कोमल से खरगोश या गर्जन करते शेर,राजा-रानी या परियां और चुड़ैल, के माध्यम से जहाँ बच्चों को अचरज से भर देती हैं वहीँ उनकी कल्पनाशीलता को नए आयाम देती हैं. कहना गलत न होगा, एक अच्छी कहानी के द्वारा बच्चे के मन के उड़ान का अंदाजा लगाना असंभव है. कहानियां बच्चों की कल्पनाशीलता को तो बढ़ाती ही है साथ ही भाषा एवं व्याकरण का ज्ञान, देश- दुनिया की कई जानकारियां, मानव जीवन के जरूरी पहलूओं से परिचय भी कराती है। निसंदेह,कहानियां बच्चों का मनोरंजन कर ख़ुशी भी देती हैं, कुल मिलाकर इसे एक अत्यंत जरूरी सार्थक गतिविधि कहा जा सकता है. और, माता-पिता, शिक्षक और अभिभावकों द्वारा बच्चों का बचपन में ही किताबों से दोस्ती कराया जाना और पढ़ने की आदत डलवाना एक अनुपम उपहार साबित होता है.

पर यहाँ कई सवाल खड़े होते हैं जैसे किताबें कैसी हों, बच्चों की रूचि कैसे जगाई जाए? सबसे महत्वपूर्ण है, बाल साहित्य का बच्चों के लिए आसानी से उपलब्ध होना और साथ ही हरेक बच्चे के पसंद के हिसाब की किताबें चुनने की व्यवस्था का होना। हर बच्चे की पसंद अलग-अलग होती है, किसी को परीकथाएं पसंद आती हैं, किसी को साहसिक कारनामे से जुड़े किस्से या किसी को साइंस फिक्शन. जरूरी है, बच्चों की अभिरूचि, आस-पास के परिवेश, जरूरतें,समझ के स्तर ,उनकी पसंद-नापसंद का ध्यान रखकर कहानियां और कवितायेँ पढ़ने को दी जाएँ, खूबसूरत चित्रों के साथ प्रकाशित कहानियां उनमे पढ़ने के उत्साह को और बढ़ा देती है. इस बात को न भूला जाए की बच्चे बड़ों से भिन्न होते हैं. बाल साहित्य के क्षेत्र में काम करने वालों का यह भी मानना है कि बालसाहित्य के नाम पर नीति, धर्म, अध्यात्म आदि को केंद्र में रखकर छापे जा रहे ‘उपदेशक साहित्य’ के अलावा बच्चों की रुचि, मनोरंजन एवं उपयोगिता को केंद्र में रखकर बाल साहित्य की रचना ज्यादा जरूरी है ताकि इनके माध्यम से बच्चों के बौद्धिक विकास के साथ- साथ भविष्य की चुनातियों से निपटने के लिए तैयार भी किया जा सके. एक अच्छा बाल साहित्य उसे ही समझा जा सकता है जिसमें मात्र सीख की ही बात न हो वरन बच्चों की भागीदारी भी महसूस की जाए, बच्चों को जवाबदेही की प्रक्रिया से जोड़ा जाए. ऐसा साहित्य जो केवल राजा-रानी, परियों, सुन्दर वन तक ही सीमित न होकर जिंदगी की पेचीदगियों से रूबरू कराये और विचारने की समझ विकसित करने में उनकी मदद करे. बच्चों के कोमल मन जैसी अवधारणा के आड़ में दुनिया की जटिलताओं से परिचय नहीं कराने और उनसे दूर ले जाने से से बेहतर यह नहीं की उन्हें इन विषयों की जानकारी देकर उनसे निपटने में उनकी मदद की जाए । इस तर्ज़ पर कि गन्दगी न देखने से गन्दगी खत्म नहीं हो जाती, गन्दगी खत्म करनी है तब हमें गन्दगी से जूझना होता है.

चलिए आज बात करते हैं कथाकार ड्रियू डेवॉल्ट और चित्रकार ऑलिवर जेफर्स की जोड़ी द्वारा बच्चों के लिए रचित एक मनोरंजक कहानी 'द डे द क्रेयॉन्स क्विट' की. खूबसूरत चित्रों से सजी एक छोटे बच्चे डंकन और रंग भरने वाले क्रेयॉन की समस्याओं की कहानी! ड्रियू डे वॉल्ट की २०१३ में प्रकाशित जहाँ यह पहली पुस्तक थी वहीँ इस कहानी में चित्रों से जान डालने वाले ऑलिवर जेफर्स उस समय तक बाल साहित्य के क्षेत्र में अच्छा मुकाम पा चुके थे. उनकी पहली ही किताब 'हाउ टू कैच अ स्टार' बच्चों का मनोरंजन करने में काफी सफल रही थी। इसके अलावा लॉस्ट एंड फाउंड, द इनक्रेडिबल बुक ईटिंग बॉय और स्टक भी खूब चर्चा में रही है. खासकर उनके द्वारा बनाये गए बच्चों की तरह बनाये गए चित्रों और हस्तलिखित स्टाइल से लिखी गयी कहानियों को लोगों ने खूब सराहा.

यह किताब भी उसी अंदाज में लिखी गयी है. शायद, बच्चों के लिए कहानी से खुद को जोड़ना स्वाभाविक और आसान बन जाता है. बड़े और छोटे लेटर्स को मिलाकर लिखने में की जाने वाली गलतियां इस कहानी में देखने को मिलती है और एक सुखद अहसास कराती है! कहानी है एक बच्चे डंकन की और असंतुष्ट क्रेयॉन्स की! पात्रों के रूप में क्रेयॉन का चुना जाना निश्चित रूप से अचंभित करता है, पर साथ में कहानी पात्रों के चयन से रोचक भी बन जाती है. सरल भाषा शैली इसे और भी मनोरंजक बनाती है. जैसा की ऊपर लिखा है, चित्रों ने कहानी में जान दाल दी है. क्रेयॉन के हाथ में प्लाकार्ड{घोषणापत्र) और उस पर लिखा उनका सन्देश 'we are not happy' आपको खुलकर हसने पर मजबूर करता है.

कहते है, एक असंभव सी कल्पना और फंतासी की रचना बच्चों को वास्तविकता से भरी कहानियों के मुकाबले अधिक मनोरंजन करने में सफल होती हैं. इस दृष्टि से लेखक यहाँ सफल दिखाई देते हैं.

कहानी शुरू होती है डंकन को मिले हरेक रंगों के क्रेयॉन द्वारा लिखे गए पत्रों से. हर क्रेयॉन ने पत्र के माध्यम से अपनी समस्याएं डंकन को बताई है. मसलन, लाल रंग की समस्या यह है कि पूरे साल तो काम में लगा ही रहता है और छुट्टियों में भी सांता और वैलेंटाइन को रंग-रंग कर थक चुका है, वहीँ बीज की शिकायत यह है कि उसे काम ही नहीं मिलता, भूरे रंग को भालू, घोड़े और पप्पी मिल जाते हैं और उसके पास आता है गेंहूं और गेंहू में रंग भरने में किस बच्चे को मजा आता है आदि ? पीले और नारंगी रंग के मध्य विवाद को सुनकर आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं वहीँ सफ़ेद रंग के केवल बर्फ और बिल्लियों को ही रंग सकने के तर्क को सुनकर हतप्रभ! क्या हल निकालेगा डंकन सबको खुश करने का? समस्या का समाधान है, डंकन द्वारा लिया गया एक बोल्ड निर्णय, एक कलात्मक अंत.
शिकायतों का पुलिंदा होते हुए भी कहानी बोझिल नहीं होती, कह सकते हैं की लेखक ने ह्यूमर को एक -एक पंक्ति में बचाकर रखा है. लेखन शैली में दोहराव नहीं है, हरेक पत्र को पढ़ने में उतना ही मजा आता है जितना पहले पत्र को पढ़ने में. चित्रों के माध्यम से हरेक क्रेयॉन के अलहदा व्यक्तित्व ,मनोभावों यथा गुस्सा, दुःख, थकान आदि को बखूबी दर्शाया गया है.

सबसे खास बात इस कहानी की, आप अपने बच्चों को देख सकते हैं एक अलग ही कल्पना करते, उनके बनाये रंगीन चित्रों से दीवारों को सजाते ..तैयार हैं आप☺