Friday 27 July 2018

कुछ ख्याल: मुंबई के कुछ उपनगरों से गुजरते हुए

छोटी -छोटी बूँदें मूसलाधार बारिश में तब्दील होकर मुंबई में हरेक साल नए कीर्तिमान बनाती है। कई अप्रिय घटनाएं मन को व्यथित करती हैं, वहीँ हमें सोचने पर मजबूर भी कि क्या इन मुसीबतों का हल नहीं ? प्रकृति के इस कहर के जिम्मेवार हम ही हैं और इनका समाधान हमें ही ढूंढना होगा। 

ऐसी ही लगातार होती बारिश के भय ने हमारे पिछले कुछ वीकेंड्स में घूमने जाने की योजना पर भी पानी फेर दिया।प्रकृति की रहमदिली ही कहिये, पिछले रविवार मौसम ने हमारा साथ दिया और हम निकल पड़े मुंबई की एक छोटी सैर पर. घूमने की जगहों की एक लम्बी सूची में से हमने इंडोर जगह घूमने को ही प्राथमिकता दी, और चुना मुंबई के एक उपनगर भायखला (Byculla )स्थित डॉ भाऊ दाजी लाड संग्रहालय को। खुशकिस्मती हमारी कि हमने एक ही परिसर में अवस्थित होने के कारण और प्रकृति की दया से संग्रहालय से ही सटे वीरमाता जीजाबाई उद्यान और ज़ू के भी दर्शन किये।एक तरफ जहाँ मुंबई की पुरानी कला-संस्कृति को जानने का मौका मिला वहीँ दूसरी तरफ प्रकृति को थोड़ा करीब से देखने का अवसर।

भायखला जाने के लिए हमें ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पकड़नी थी, ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे यानि EEH, मुंबई के दक्षिणी और उत्तरी भाग को जोड़ती२३.५५ किमी लम्बी सड़क। छत्रपति शिवजी टर्मिनस से ठाणे तक दौड़ती और मुंबई के पूर्वी उपनगरों को एक-एक कर छूते हुए, रोजाना लाखों की संख्या में लोगों को अपने मुक़ाम तक पहुँचाती यह सड़क ।और, इस सड़क के समानान्तर दौड़ती है मुंबई की लाइफ लाइन 'लोकल ट्रेन' की सेंट्रल लाइन। मुंबई के पूर्वी सबर्ब को 'ईस्ट' और 'वेस्ट' में विभाजित करते हुए। मसलन घाटकोपर ईस्ट, घाटकोपर वेस्ट और दादर ईस्ट, दादर वेस्ट इत्यादि।

यात्रा शुरू हो चुकी थी। योजनानुसार, घाटकोपर से ईस्टर्न एक्सप्रेस लेकर कई पूर्वी उपनगरों को लांघकर भायखला पहुँचना था। रविवार को अपेक्षा के अनुरूप सड़क पर गाड़ियों की संख्या कम ही थी. सबसे बड़ा फायदा यह कि पहुँचने और लौटने के समय का अनुमान लगा पाना संभव है. सबसे पहले पहुंचे घाटकोपर, हाँ वही मुंबई का पूर्वी सबर्ब घाटकोपर जो पिछले महीने एकचार्टर्ड प्लेन के एक निर्माणाधीन इमारत से टकराने की हृदय विदारक घटना, की वजह से समाचारों में था । एक घनी आबादी वाला मुंबई का उपनगर ,जहाँ से मेट्रो रेल पकड़कर मुंबई के पश्चिमी सबर्ब वर्सोवा तक जाया जा सकता है. हाँ, मुंबई के पूर्वी हिस्से को पश्चिमी हिस्से से जोड़ने वाली मुंबई की पहली मेट्रो लाइन का एक मुख्य स्टेशन घाटकोपर।

ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर हम चल रहे हैं, सड़क के दोनों ओर यातायात सम्बन्धी हिदायतें देते बोर्ड दीखते हैं, हमारी ही सुरक्षा के लिए हमें सावधान करते निर्देश। स्पीड लिमिट का एक एक बोर्ड जिस पर एक लाल रेखाओं से बने एक वृत्त के मध्य ४० लिखा है, पर सड़क पर हवा से बातें करती गाड़ियों को देखकर आगे लगे बोर्ड पर नजर ठहरती है और याद आती है २ दिन पहले ही बच्चों के क्लासेज के सन्दर्भ में बातचीत के दौरान किसी की कही हुई बात, आई लव रूल्स, सीरियसली! मैं सोचने लगती हूँ, डू वी ???

घाटकोपर छूटा और पहुंचे वडाला । हरेक उपनगर अपने आप में भरा पूरा एक शहर। ट्रैफिक लाइट पर दीखती हैं, ग्रीन लाइट होने के इंतज़ार में खड़ी गाड़ियों में बैठे लोगों को फूल की मालाएँ बेचने की कोशिश करती घस्त्रियां और बच्चे। ध्यान में वो साडी चीजें एक के बाद एक आने लगती है, जो यूँ ही ट्रैफिक लाइट पर ख़रीदे हैं मैंने, छोटे-बड़े खिलौने, बेन १० का बबल गन, डस्टिंग क्लॉथ, भूने मूंगफली और चने, मच्छर मारने की रैकेट, किताबें, फूल, झंडे, पेंसिल, पेन, और अभी हाल में मिटटी का तवा... और अन्य काफी रंग- बिरंगी चीजें बिकते देखा है... मेह्नत की कमाई भीख माँगने से बेहतर है। वहीँ सवाल यह भी उठता है की क्या ट्रैफिक के परिचालन और दुर्घटनों के मद्देनजर हमें इन सामानों को न खरीदकर इसे हतोत्साहित करना चाहिए? बत्ती हरी हो चुकी थी और पुनः गाड़ी रफ़्तार पकड़ने लगी. थोड़ी ही दूर आगे सुमननगर के बोर्ड के नीचे एक औरत फूलों की माला को हाथों में लिए खड़ी दिखी, ट्रैफिक के पुनः रुकने का इंतज़ार में.

वडाला कब गुजरा और सायन पहुंचे, अंदाज लगाना मुश्किल । सब एक दूसरे में समाये हुए.. सायन (शीव)यानि सरहद या सीमा। जैसा की नाम से ही अनुमान लगाया जा सकता है, १८वीं शताब्दी में मुंबई में प्रवेश करने वालों पर यहीं निर्मित किले से नजर रखी जाती थी। यह पहाड़ी अपनी ऊँचाई के कारण सामुद्री यातायात पर नज़र रखने के लिए महत्वपूर्ण था भले अब वहाँ समुद्र का अता पता नहीं चलता। आज इस इतिहास को समझने के लिए पुराने नक़्शे खंगालने होंगे जब आज का मुंबई शहर ७ -अलग-अलग द्वीपों में वितरित था, २२ पहाड़ियों से घिरा हुआ. सायन से कोलाबा (मुंबई का दक्षिणी भाग) तक पूर्वी और समुद्रतट के किनारे-किनारे पश्चिमी हिल रेंज के होने को विश्वास करना मुश्किल।
आगे पहुंचे दादर, मुंबई का पहला प्लांड सबर्ब। सिद्धिविनायक मंदिर, शिवाजी पार्क, हिन्दू कॉलोनी, पारसी कॉलोनी, मराठी फिल्मों की नामचीन हस्तियों का बसेरा, एक और पूर्वी सबर्ब। सड़क के दोनों तरफ छोटी-बड़ी, दुकानों की भारी संख्या इशारा करती कि कितने लोगों की पनाहगार है, यह सबर्ब। दादर का अर्थ है, 'सीढ़ी'. यक़ीनन मुंबई के प्रमुख द्वीप को अन्य द्वीपों से जोड़ने वाला कड़ी... मुंबई के 'कॉटन मिल युग' के समय कई प्रसिद्द कॉटन मिल मसलन बॉम्बे डाईंग, गोल्ड मुहर मिल, कोहिनूर मिल, रूबी मिल और टाटा मिल यहीं स्थापित किये गए थे. और अगर खाने की बात की जाए तब यह जानना बड़ा ही रोचक है कि विश्व प्रसिद्ध 'वड़ा पाव' ने सर्वप्रथम यहीं दादर स्टेशन पे ही लोगों को अपना दीवाना बनाया।

अब बात परेल की, हमारा अगला पड़ाव। पुनः कहना जरूरी नहीं कि दुकानों के ऊपर लगे बोर्ड से ही यह जानना संभव हुआ कि हम किसी और सबर्ब में प्रवेश कर चुके हैं। मूलतः कपड़ा मिलों का केंद्र रहे इस इलाके में मिलों के बंद होने के बाद दक्षिण मुंबई के कई व्यावसायिक केंद्र यहाँ स्थापित हुए, कई कॉर्पोरेट दफ्तर खुल गए. बायीं-दायीं नज़ारे घुमाने भर से ही इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. पिछले वर्ष की मुंबई में एल्फ़िंस्टन और परेल के लोकल रेलवे स्टेशनों को जोड़ने वाले पुल पर मची भगदड़ की घटना इशारा करती है कि हमें इस सबर्ब में अचानक बढ़ी भीड़ की सुरक्षा के इंतेज़ाम के बारे में गहराई से पड़ताल करनी चाहिए।


बस कुछ ही देर में हम पहुंचे भायखला स्थित अपने गंतव्य जीवाजी उद्यान के परिसर में, सबसे मजेदार बात, यहाँ पेंगुइन देखे जा सकते हैं.. है न अनोखी बात। पेंगुइन और मुंबई में ? है न यह मायानगरी !