Thursday 19 March 2020

अंतरिक्ष से जुड़ी बातें!



ब्रहमाण्ड की कई गुत्थियों को समझने की दृष्टि से भारत की कई अंतरिक्ष परियोजनाएं जैसे मंगलयान, चंद्रयान१ या चंद्रयान २ काफी मत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा भविष्य की प्रस्तावित अन्य परियोजनाओं जैसे चंद्रयान ३, आदित्य १ या फिर गगनयान को लेकर भी लोगों में उत्साह है।दिन, रात, तारे, बादल, ग्रह, उल्का पिंड, धूमकेतु इत्यादि आदि काल से ही इंसानों की जिज्ञासाओं के केंद्र में रहे हैं। अभी हाल में भी लोगों द्वारा रात भर जागकर अपने अंतरिक्ष यान की प्रगति को देखने की खबर से भी यही कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष को लेकर हमारी उत्सुकतायें कम नहीं हुई हैं। विश्व भर में अंतरिक्ष को लेकर दिलचस्पी है और कई देशों में अंतरिक्ष सम्बन्धी परियोजनाओं पर काम चल रहे हैं। हालांकि यहाँ उल्लेखनीय है कि यह अब महज जिज्ञासा शांत करने का विषय नहीं, वरन अब तो यह देशों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण के साथ-साथ सामरिक महत्व से भी जुड़ा है। अंतरिक्ष पर नियंत्रण और प्रभुत्व को लेकर देशों के बीच एक होड़ भी चल रही है। मोबाइल,इंटरनेट, टीवी जैसी संचार सुविधाओं से लेकर सैन्य गतिविधियों के मसले इन परियोजनाओं से ही जुड़े हैं। साथ ही, इन्हीं कार्यक्रमों के दम पर अंतरिक्ष में खनिज दोहन या फिर अंतरिक्ष पर्यटन जैसी बातें की जा रही हैं। संक्षिप्त रूप में कह सकते हैं कि अन्तरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति और सामाजिक अवसरंचना की रीढ़ है।
लोगों की इस क्षेत्र में दिलचस्पी ही कारण कही जा सकती है जिसके कारण कई फिल्म निर्माताओं ने भी हमें फिल्मों के माध्यम से अंतरिक्ष में ले जाकर एक ऐसी दुनिया की सैर कराने की कोशिश की है जिसकी आम इंसानों के लिए धरती पर बैठकर कल्पना करना मुश्किल है।साई -फाई फ़िल्में! कोई हमें चाँद के बारे में बता रहा है, कोई मंगल ग्रह का भ्रमण करा रहा है, या फिर किसी अंतरिक्ष यात्री की दास्ताँ सुना रहा है. कहीं दूसरे ग्रह पर जीवन ढूढने की कवायद है या कहीं एलियन की परिकल्पना है, तो कहीं सोलर स्टॉर्म फिल्म के केंद्र में है। इन फिल्मों में कुछ वैज्ञानिक तथ्यों को भी शामिल किया गया है और वहीँ कुछ कल्पनाओं का सहारा भी लिया गया  है।
अंतरिक्ष और उससे जुडी कई अन्य अवधारणाओं पर IMDB पर बेस्ट स्पेस मूवीज की श्रेणी में ३७ फिल्मों के नाम दर्ज़ हैं। जैसे, क्रिस्टोफ़र नोलन द्वारा निर्देशित २१०४ में आई फिल्म 'इंटरस्टेलर' अंतरिक्ष यात्रियों के एक दल के किसी वर्महोल के जरिये मानवों के लिए नए ठिकाने की खोज हेतु यात्रा पर निकलने की कहानी है। धरती अब मनुष्यों के रहने लायक नहीं बची एवं मानव जाति का अस्तित्व खतरे में है, इसी को बचाए रखने की खातिर नए ग्रह की तलाश को इंटरस्टेलर में दिखाया गया है। इसी तरह, बेहद खतरनाक और आक्रामक एलियंस से अचानक से हुई मानवों की मुलाकात और भिड़ंत की कहानी है सन १९७९ की फिल्म 'एलियन', वहीँ स्टेनली कुब्रिक द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'ए स्पेस ओडीसी' मशहूर लेखक आर्थर क्लार्क की लघु कहानी "द सेंटिनल" पर आधारित है। इसी श्रेणी की एक और फ़िल्म है, ग्रैविटी(२०१३)। बमुश्किल ४-५ चरित्रों के साथ डेढ़ घंटे की फिल्म। सरल-सी कहानी परन्तु अंतरिक्ष में फैले कचरे को लेकर एक गंभीर सवाल खड़ी करती हुई !अंतरिक्ष में भेजे गए हेब्बल टेलिस्कोप में कुछ मरम्मत करने पहुंचे अमेरिकन अंतरिक्षयात्रियों के एक दल के इर्द -गिर्द घूमती इस कहानी में अंतरिक्ष में रहने के अजीबोगरीब अनुभवों, उन हालातों से निपटने की अंतरिक्षयात्रियों के अलहदा अंदाज़ और अंत में उनके उपर आई एक मुसीबत और उस त्रासदी से बचकर धरती पर सकुशल वापस लौटने को बहुत ही रोमांचक ढंग से दिखाया गया है।आसान नहीं होता, धरती से अंतरिक्ष तक  २००-३००मील का सफर!  कभी बर्फ़ से भी ज्यादा ठंढा और कभी सूर्य की गर्मी पाकर जरूरत से ज्यादा तापमान इसे अनुभव करने का बेहतरीन ज़रिया है यह फ़िल्म। चाहे वह भारी-भरकम स्पेस सूट में लिपटे, ऑक्सीजन सिलिंडर पीठ पर लटकाये या किसी विशेष यंत्र की सहायता से आपस में बातें करते या फिर  हवा में तैरते और समरसॉल्ट करते अंतरिक्ष यात्रियों का दृश्य हो। वैज्ञानिकों का  दल अपने आप को किसी चेन या रस्सी से स्पेस स्टेशन से बाँध अपने काम में धैर्यपूर्वक जुड़ा है और धरती पर बैठे मिशन कण्ट्रोल से निरंतर संपर्क में है. वहां के असामान्य परिस्थितियों को सामान्य बनाने की कोशिश में लगे मिशन के एक सदस्य मैट कोवालास्की की बातों और कहानियों से शुरू होती है फिल्म।
हलके -फुलके माहौल में बेचैनी तब आती है जब मिशन के सदस्य डॉ स्टोन और मैट क्वालास्की को पता चलता है कि मलबे के रूप में आफ़त उनकी तरफ बढ़ती आ रही है।रूस द्वारा अपनी ही उपग्रह को मार गिराने केबाद उसी कक्षा में उपस्थित कई उपग्रहों के टूटने-बिखरने और एक झटके में सब कुछ तहश -नहश का भयानक दृश्य! मात्र ९० मिनट का समय,कम होता ईंधन और ऑक्सीजन का स्तर और जल्द -से -जल्द एक सुरक्षित स्पेसक्राफ्ट तक पहुँच पाने जैसे दवाब अंतरिक्षकर्मियों के साथ-साथ दर्शक भी झेलने से नहीं बच पाते। अंतरिक्ष में फ्री फॉल के दृश्य,तेजी से चलती हुई साँसों की आवाज और मलबे के वापिस टकराने का भय रोंगटे खड़े करता है। और, इन भयानक दृश्यों के बीच अंतरिक्ष से नीले गोले को देखना सुकून देती है! अँधेरे के समय बिजली से जगमगाती धरती का दृश्य या फिर सूरज की किरणों को आत्मसात करती धरती!
और हाँ, यहाँ उल्लेखनीय है कि हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म 'ग्रेविटी' का बजट हमारे मंगल अभियान से भी ज़्यादा है!इस वजह से इस फ़िल्म को कड़ी आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ा।
खैर, कई जानकारियों से भरी इस फिल्म के बारे में कहा जाता है कि कुछेक दृश्यों को छोड़ यह फिल्म काफी हद तक सत्यता के करीब है। फिल्म देखने के बाद यह बात दिमाग  में आती है कि अंतरिक्ष में बड़े पैमाने पर भेजे जाने वाले सैटेलाइट, संचार उपग्रह, पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह, प्रायोगिक उपग्रह, नौसैनिक उपग्रह, वैज्ञानिक शोध और खोज के उपग्रह, शैक्षणिक उपग्रह और अन्य छोटे-छोटे उपग्रह रिसर्च इंजन, रॉकेट और अंतरिक्षयान जब कभी  हादसे के शिकार होते हैं या जो फिर इस्तेमाल के लायक नहीं बचे हैं, वो अंतरिक्ष यान, उपग्रहों और स्पेस स्टेशनों के लिए ख़तरनाक हो सकते हैं।  यक़ीनन दुनिया भर के देशों की बढ़ती अंतरिक्ष गतिविधियों की वजह से अंतरिक्ष में मलबा बढ़ता ही जा रहा है।  विशेष रूप से शुरुआत में जो प्रक्षेपण किए थे उसमें अंतरिक्ष के कचरे पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया था।  हालांकि अंतरिक्ष में मौजूद मलबे को इकट्ठा करने के लिए कुछ प्रयोग ज़रूर किये गए हैं जैसे नेट या हार्पुन लगाकर किसी तरह से मलबे को खींच कर उन्हें डीऑर्बिट करना और वापस धरती पर लाकर जला दिया जाना।उदाहरणार्थ, नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (Nasa’s Space Debris Sensor), रिमूव डेबरी उपग्रह, डी-ऑर्बिट मिशन (Deorbit mission) आदि। लेकिन यह कितने कारगर हैं या इस पर कितना खर्च आएगा अभी उस पर पूरी जानकारी नहीं है।इन सवालों के बीच की क्या अन्तरिक्ष में भेजे गए उपग्रहों का मलबा हमें पाषाण युग में पहुंचा सकता है, सभी देशों को मिलकर तत्परता से इस दिशा में काम किये जाने को निहायत जरूरी बनाता है।