Friday 16 October 2009

शुभ दीपावली




दीवाली के दिन पूजन का विशेष महव है. गणेश जी , लक्ष्मी जी और सरस्वती जी की पूजा अर्चना कर लोग धन, सुख समृद्धि, बुद्धि और ज्ञान प्राप्ति की कामना करते हैं। विधिवत पूजा करने में आनंद भी है और संतोष भी ...

कलश, आम के पत्ते, फूल, अक्षत, अगरबत्तियां, मूर्तियाँ ,इत्यादि पूजा के वक्त उपयोग में लाये जाते हैं।
परन्तु जानकारी के अभाव की वजह से कई लोग चाहते हुए भी इस परम्परा का निर्वहन कर सकने में असक्षम हैं ।
अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तब यहाँ क्लिक करें ॥ पूजा के प्रत्येक चरण की जानकारी यहाँ उपलब्ध है ...
अपनी दीवाली भी मनाएँ इस बार कुछ अलग और परंपरागत अंदाज़ में ...

दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं ....

Monday 28 September 2009

ए क्या बोलती तू

ए क्या बोलती तू ... , ओ हरे दुपट्टे वाली .... गाने गाकर नायिका को छेड़ते नायक लोगों का मनोरंजन करने मे कितने सफल रहते हैं पर नि:संदेह समाज की एक गंभीर समस्या जरूर उजागर होती है. 'ईव टीज़िंग' नाम से जाना जाने वाला कुछ मनचले लड़कों की यह करतूत वास्तव में कितनी घातक है, इसका प्रमाण है गत ४ जुलाइ को मुंबई की सौजन्या जाधव द्वारा अपने घर मे आत्महत्या की घटना. स्कूल , कॉलेज जाती लड़कियाँ , ऑफीस जाती या खरीददारी करती महिलाएँ , मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ती , सुबह- शाम पार्क मे टहलती अथवा विदेशों से घूमने आई महिलाएँ हों, किसी ना किसी रूप मे ईव टीज़िंग का शिकार होती रहती हैं. सीटी बजाना , गंदी निगाहों से घूरना, गाने गाना , भद्दी व फूहड़ टिप्पणियों से लेकर शारीरिक स्पर्श और बस से नीचे तक फेंक दिए जाने की घटना देखी गयी है.

ऐसी शर्मनाक घटनाएँ जहाँ छोटी उम्र की लड़कियों के करियर पर असर करती हैं वही दूसरी ओर औरतों के मानस- पटल पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव भी छोड़ती है . पुरुषों के प्रति अविश्वास की भावना भर जाती है कभी- कभी ताउम्र इस त्रासदी से बाहर नही निकल पाती.

आख़िर क्या है कारण? मनोचिकित्सकों का मानना है की इसके पीछे समाज की पितृिसततात्मक व्यवस्था ही प्रमुख रूप से ज़िम्मेवार है . लालन -पालन के तरीके ऐसे हैं कि बालकों के मान मे इस तरह की धारणा बन जाती है कि औरत वर्ग कमजोर है व मनोरंजन के साधन के रूप मे इस्तेमाल करने योग्य है. इसके अलावा यौन शिक्षा की कमी भी प्रमुख कारण है. अश्लील साहित्यों एवं पोर्नोग्राफ़ीकी इंटरनेट पर बेरोक टोक उपलब्धता, मीडिया व फिल्मों मे महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप मे पेश किए जाने का भी महत्वपूर्णयोगदान है.

इस समस्या के समाधान के लिए ज़रूरत है सार्थक कदम उठाने की. सर्वप्रथम परिवार व प्रशासन तन्त्र के भरपूर सहयोगकी. दोषी पाए जाने पर सख्त-से सख्त सज़ा दिए जाने का प्रावधान किया जाना ज़रूरी है. चेन्नई पोलीस द्वारा गठित व्हाइट ब्रिगेड सड़क -छाप मजनूं पर लगाम उठाने की दिशा मे सराहनीय कदम है. शिक्षण - संस्थाओं मे केवल जींस पर प्रतिबंध लगाकर दायित्वों की इतिश्री ना की जाए वरन कुछ प्रभावी कदम उठाए जाएँ. नुक्कड़ नाटकों सभाओं आदि का आयोजन कर समाज मे इसके प्रति जागरूकता फैलने का कम किया जा सकता है. मतलब साफ है किलड़कियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा मे कम किए जाए व उन्हें आत्मसुरक्षा के तरीके सिखाए जाएँ.

तभी सही मायनों मे देश की आधी आबादी प्रतिष्ठापूर्ण अपने जीवन जीने के अधिकार के साथ पूर्ण स्वतंत्रता का सुख महसूस कर सकती है.

Saturday 12 September 2009

बच्चे और अनुशासन

बच्चे बड़े होनहार होते हैं सब कुछ इतनी जल्दी सीख लेते हैं ,आश्चर्य भी होता है और गर्व भी
ऐसे ही कुछ बच्चों से प्रतिदिन मुलाकात होती है शाम के समय मुहल्ले के सारे बच्चे लगभग - की संख्या में खेलते, भागते, कूदते-फांदते दिख जाते हैं . सब अपने ही धुन में, ऊर्जा से भरे हुए

एक शाम बच्चों का एक समूह कुछ खेलने में व्यस्त था जिसका नेतृत्व उस समूह की सबसे बड़ी लड़की कर रही थी . लगभग - साल की. अचानक से कुछ तेज बोलने की आवाज़ से मेरा ध्यान उनकी तरफ़ गया

वो बच्चों को एक कतार में खड़े करने के लिए प्रयत्नरत थी थोड़ा झुंझला कर बोली -
"Be in line ! If you don't behave, you will not be allowed to play here."

बच्चे समझ नही पाये.


हम बड़े भी कहाँ इतनी जल्दी समझ लेते हैं.
तब उसने और भी जोर से कहा .. "if you don't listen to me, I will throw you out of the ground."

oh !
मैंने उससे पूछा , "Will they follow you if you talk like that?"
थोड़ा मुस्कुरा कर बोली , No.
और वापिस अपनी दुनिया में.....
उसे पता था , नहीं

समझ नहीं आता कि भावी कर्णधारों को बोलने का कैसा लहज़ा सिखा रहे हैं हम?
विवेक और सहनशीलता की जगह क्या पाठ पढ़ा रहे हैं उन्हें ?
क्या प्यार और स्नेह से बच्चों को अनुशासित करने की तरकीब ठीक नही?

डांट सज़ा के द्वारा एक अच्छे एवं अनुशासित बच्चे के निर्माण की कल्पना सही नही है . वरन बच्चों के उद्दंडी जिद्दी होने की संभावनाएँ बढ़ जाती है. ऐसा मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है ।

इसी से संबंधित
Pink Floyd का प्रसिद् गाना "We Don't Need No Education... " सुना था . इस गाने की लोकप्रियता से समस्या की गहराई का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.







Thursday 10 September 2009

क्या नियम कानून इसीलिए बनाये जाते हैं?

आज सुबह से घर में ग्रिल वर्क चल रहा था .वही घर के चाहरदीवारी को लोहे के छड़ से घेर दिए जाने का काम. मतलब टोटल सुरक्षा। छोटे छोटे शहरों से लेकर बड़े बड़े महानगरों तक दृश्य आम है .कोई नयी बात नहीं।
बस सब कुछ फिट कर जाते समय वेल्डर एक हिदायत देने लगा।
मैडम , इलेक्ट्रिसिटी वाले आए और पूछे की ग्रिल कब लगवाया तब कह दीजियेगा घर ख़रीदा तबसे है।
अब इसे क्या हो गया , पर क्यूँ?
क्यूंकि वो फिट करते वक्त पॉवर यूज करना पड़ता है , उसके लिए परमीसन लेना होता है।
मैंने पूछा, बताया क्यूँ नही पहले?
क्या झंझट में पड़ना मैडम .. २-३ दिन लेट भी हो जाता ..
आगे मैं कुछ बोल नही पाई .. हाँ हाँ ठीक है .
अगर आप हाँ बोलेंगे तब ५०-१०० रुपये लेकर मानेगा ।
हाँ, ठीक है ।
बात खत्म हुई । वो चलता बना ।

तब से मन सवालों के जाल में फंसा है। अब क्या करे एक इंसान जो की हमेशा नियम पालन की कोशिश करता है, अब जाकर कहे विद्युत विभाग को भई हमने आप के नियम को भंग किया है , दे दो सजा, ले लो जुरमानाया कहे की क्यूँ नोटिस चिपका कर नही रखते की अगर ऐसा कुछ काम कराएँ तब पहले स्वीकृति ले ले। या फिर आप ने ये नियम ही इसलिए बनाया है की उपरी कमाई होती रहे ? आप क्या कहते हैं ?

Wednesday 9 September 2009

मेरी पहली पोस्ट

लगभग २ वर्षों से ब्लागवाणी नियमित रूप से पढ़ती आ रही हूँ । कितनी बार कोशिश की कुछ लिखा भी जाए , पर असफल ।कुछ अज्ञात सा भय घेरे था ।अब इतनी बड़ी लेखिका तो हूँ नहीं कि राईटर'स ब्लाक की शिकार हो जाऊँ ।तब क्या है परेशानी? अंतर्जाल पर खोज बीन करने के उपरांत बात साफ़ हुई कि बहुत ही कॉमन सी समस्या है ये। तो क्या किया जाए? पहले जानते हैं कि आख़िर क्या हमें लिखने से रोकती है?

असफल होने का भय , रचनात्मक न बन पाने का डर, मूर्ख समझे जाने का अनजाना डर, आलोचना का डर आदि वजहों से लेखन क्षेत्र से दूर ही रहने में अपनी भलाई समझते हैं . मान लेते हैं कि बस समय और मेहनत की बर्बादी है. हमसे तो कुछ न होगा, क्या लिखेंगे, कुछ खास विषय भी नहीं है, लिखने की ईच्छा के बावजूद ऐसे बहाने भी ख़ुद को दे डालते हैं । और तो और बहुत- से लोग सफलता से भी डर की वजह से लिख नहीं पाते।

सबसे पहले ज़रूरत है कि पहचाना जाए कि असल में मेरी समस्या क्या है? समस्या का सामना कर ही समस्या से निजात पाया जा सकता है. जहाँ तक आलोचना की बात है तो सबको मालूम है कि दुनिया के सारे महान लेखकों को कभी न कभी आलोचना का शिकार होना ही पड़ा है। अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में कैसी असफलता ? कैसी रचनात्मकता की ज़रूरत है ? कोशिश ही न की जाए तब सफलता की क्या उम्मीद की जा सकती है?आपने हरिवंश राय बच्चन जी की कविता तो पढ़ी ही होगी "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती" । और फिर मार्गदर्शन के लिए अनुभवी चिट्ठाकारों की कमी भी नहीं ।

तो बस उठाइये कलम मेरा मतलब है कीबोर्ड पर दबाइए उँगलियाँ और हो जाइये शुरू . लेखक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कर हिन्दी ब्लॉग जगत को और भी समृद्ध बनायें।


-इस ब्लॉग के माध्यम से आपका ज्यादा समय न लेते हुए जैसा की नाम से ही स्पष्ट है , अपने अनुभवों, विचारों को आपलोगों तक पहुंचाने की कोशिश करूंगी ।