Friday 27 November 2020

गणित के साथ एक मधुर रिश्ता बनाती है मैथ्स विद बैड ड्रॉइंग्स: बेन ओर्लिन की पुस्तक


१०० में १०० यानी १००%, १०० में ९९ मतलब ९९%, ९८ में ९६ का अर्थ ? घबराइये मत, बात यहाँ गणित की किताब की होगी परन्तु सवाल हल नहीं करने हैं, गणित में आप कितने तीस मार खां हैं, उसका भी निर्णय नहीं करना है।  बात है तो बस गणित के वास्तविक दुनिया से अभिन्न रिश्ते की! ज्यामिति के अंतर्गत सीखे गए विभिन्न आकारों , प्रायिकता के सिद्धांत, सांख्यिकी के आंकड़ें इत्यादि को क्या वाकई हम पुलों के स्ट्रट और स्तम्भों के बीच सम्बन्ध, मिस्र के पिरामिड, लोगों के मध्य बहुत प्रचलित लॉटरी, २००८ की आर्थिक मंदी या फिर चुनावों के गणित आदि से जोड़ कर देख सकते हैं? गणित को समझना सबके बस का नहीं, इस अवधारणा के विपरीत मैथ शुड बिलोंग टू  एवरीवन' उद्देश्य के साथ गणित के शिक्षक रह चुके बेन ओर्लिन ने  यह किताब  लिखी है. 'मैथ्स विद बैड ड्रॉइंग्स ' में फॉर्मूले, समीकरण, लम्बे चौड़े समाधान आदि नहीं हैं वरन आम जिंदगी में गणित विषय के महत्त्व को समझाने की कोशिश है। कई उदाहरणों और साथ- साथ इन उदाहरणों से जुड़े तक़रीबन ४०० मजेदार चित्रों का संकलन है। निश्चित रूप से किताब का ये शीर्षक और 'बैड ड्रॉइंग्स'  के साथ गणित को समझाने का यह अनोखा तरीका किताब के प्रति उत्सुकता तो जगाता ही है और साथ ही विषय को समझने में मददगार भी साबित होता है।

 गणित विषय को लेकर अमूमन विद्यार्थियों एवं यहाँ तक कि काफी संख्या में वयस्कों में भी एक अनजाने भय का होना एक विश्वव्यापी समस्या है। एक शिक्षक के तौर पर काम करते हुए अपने अर्जित अनुभवों के आधार पर लेखक ने अपनी किताब की भूमिका में इस समस्या की चर्चा भी की है। लम्बे-चौड़े सवालों का समाधान करने में माहिर बच्चे गणित और अपनी ज़िन्दगी के  मध्य कड़ी को समझने में नाकामयाब होते हैं।  बच्चा टेक्स्टबुक के मैथ और उसके उपयोग के बीच तार नहीं जोड़ पाता ,हम यह क्यों पढ़ रहे हैं, इसका उपयोग क्या है? अतिरिक्त नम्बरों का दबाब, जल्द-से-जल्द सवाल करने पर जोर आदि कई बातें है जिससे बच्चे गणित से दूर भागने लगते हैं और  होती है गणित के साथ ख़राब रिश्ते की शुरुआत।  निसंदेह बदलाव होने चाहिए जैसे विषयों की सामग्री, पढ़ाने के तरीकों  या फिर जांच के तरीकों इत्यादि। 

इस किताब के  कुछ शीर्षकों पर नजर  डालते हैं, हाउ टू थिंक लाइक ए मैथेमैटिशियन या फिर डिफरेंस बिटवीन गुड एंड बैड मैथेमैटिशियन, द रेप्लकेशन क्राइसिस ऑफ़ साइंस या केऑस थ्योरी ऑफ़ हिस्ट्री, हैं  न अजीब से ! अपनी जिंदगी से उठाये कुछ किस्से या फिर कई घटनाओं को हास्य का पुट देने का उनका अंदाज़ जहाँ पुस्तक को मनोरंजक बनाता  है वहीँ विषय की गहराई को पाठकों तक पहुँचाने से कहीं भी नहीं चूकते। गणित में उपयोग होने वाले अजीबोगरीब चिन्ह और उनके मायने, गणितज्ञों के  सोचने के तरीकों, आर्किटेक्ट की पसंद त्रिभुज ही क्यों, A4 पेपर लम्बाई और चौड़ाई  को चुनने के पीछे का तर्क, बीमा योजनाओं और इसी तरह २४ अध्यायों में बँटी  इस पुस्तक के हर अध्याय में एक भिन्न विषय पर चर्चा! विषयों की विविधता तो है ही  और साथ ही, सोचने पर जोर देती है ये पुस्तक। गणित है क्या, सोचने का कुशल तरीका!

एक बात हम भारतीयों को खटक सकती है और वह है इस किताब के सभी उदाहरणों का USA  जीवनशैली अर्थात वहां  की बोलचाल के तरीकों, खेल, मूवी, गानों, राजनीति आदि पर आधारित होना। 

अमूमन मैथ्स विषय पर लिखी गयी किताबें उस विषय के जानकार ही पढ़ने के इच्छुक होते हैं परन्तु यह किताब उन सबके लिए है जो या तो एक डर की वजहसे इस विषय से भागते हैं, या फिर जो इस विषय को और भी गहराई से जानना चाहते हैं। 

 जाने -पहचाने गणित की अवधारणाएं  और अधिक स्पष्ट होगी। विशेष रूप से सातवीं से दसवीं कक्षा में पढ़ रहे बच्चों के लिए  उपयोगी साबित हो सकती है, भले ही इस किताब को पढ़कर तत्काल ज्यादा अंक हासिल करने में कामयाबी न मिले परन्तु गणित के प्रति एक सकारात्मक नजरिये को विकसित करने  में सहायता जरूर मिलेगी।