Saturday 21 February 2015

स्वच्छ भारत अभियान


"मैं न गंदगी करूंगा और न किसी को करने दूंगा", मोदीजी  का यह  वक्तव्य जहाँ  उनकी  स्वच्छ भारत के प्रति गंभीर चिंता को  दर्शाता है वहीँ  भारतवासियों में यह आशा भी जगाता है कि  शायद सबसे गंदे और प्रदूषित राष्ट्र के निवासी कहलाने के कलंक से  छुटकारा पा जायें ।

 भारत को साफ़-सुथरा देश बनाने के उद्देश्य के साथ भारतीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने  पिछले वर्ष दो अक्तूबर को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत  की । उस दिन देश भर के तक़रीबन ३ मिलियन सरकारी कर्मचारियों और छात्र-छात्राओं की सफाई अभियान में भागीदारी से आशा बंधी कि शायद वर्ष 2019 में गांधीजी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ तक हम स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पा सकेंगे।

इस अभियान को सफल बनाने के लिए तमाम मंत्री और अधिकारी जोर-शोर से जुटे। हाथों में झाड़ू थामे सार्वजनिक स्थलों की सफाई करते प्रधानमन्त्री और नामचीन हस्तियों ने सफाई को लेकर जागरूकता फैलाने की कोशिशें भी की. जगह-जगह लगाए गए बड़े-बड़े पोस्टर, विज्ञापनों, टीवी कार्यक्रमों, पपेट शो आदि के माध्यम से जन -जन तक सन्देश पहुंचाने का काम किया गया.  प्रधानमंत्री जी ने भी अपने भाषणों में कई दफा हर भारतीय से इस मिशन में शामिल होकर इसे सफल बनाने की अपील की है. उनका कहना है कि अगर हम इसे एक जनआंदोलन बना दें तो हम अपने देश की गिनती सबसे साफ राष्ट्रों की सूची में करा सकते हैं। स्वच्छता को पर्यटन और भारत के वैश्विक हित से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के प्रति वैश्विक अवधारणा में व्यापक बदलाव लाने के उद्देश्य से देश के 50 शीर्ष पर्यटन स्थलों में स्वास्थ्य और स्वच्छता का स्तर विश्वस्तरीय होना जरूरी है।

क्या है स्वच्छ भारत अभियान?

पांच वर्षों में भारत को गन्दगी मुक्त देश में तब्दील के उद्देश्य से शुरू किये गए स्वच्छता अभियान का आशय निश्चित रूप से मात्र स्वयं एवं घर परिवार तक की सफाई तक सीमित नहीं है वरन इसके तहत हरेक गाँव, मोहल्ला, सड़कें, फुटपाथ और बस्तियां को साफ़-सुथरा करना, अनाधिकृत क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाना अपशिष्ट जल को स्वच्छ करने की योजना है. संक्रामक महामारियों के नियंत्रण, पेय जल आपूर्ति की व्यवस्था, शहरी आबादी तथा उद्योगों के काम-काज से उत्पन्न कचरे के निबटान जैसी समस्याओं का समाधान ढूंढना भी शामिल है. इससे भी आगे बढ़कर इसके अंतर्गत सफाई कर्मचारियों के प्रति सम्मान की भावना के विकास को भी शामिल किया गया है. निसंदेह लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरुक कर व्यक्ति, समाज और देश के स्वास्थ्य में  सुधार लाया जा सकता है।

क्यों जरूरी है यह अभियान ?

आंकड़ों के हिसाब से भारत दुनिया के सबसे गंदे और प्रदूषित राष्ट्र की श्रेणी में आता है . पूरी दुनिया के 20 सबसे ज्यादा गंदे शहरों में 13 भारत के हैं जिनमें नई दिल्ली, पटना, ग्वालियर और रायपुर शीर्ष चार स्थानों पर हैं.

भारत की दो- तिहाई आबादी गंदगीयुक्त वातावरण में जीने के लिए मजबूर हैं, शौचालयों की सुविधा के अभाव में अभी भी लगभग 62.6 करोड़ भारतीय खुले में शौच करते हैं.

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के मुताबिक हैजा, अतिसार, हेपेटाइटिस A , मलेरिया, डेंगू जैसे रोगों का जोखिम पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा है.

स्वच्छता और बच्चों के विकास के मध्य गहरे सम्बन्ध को भी नकारा नहीं जा सकता। संक्रमण और बार- बार डायरिया के शिकार बच्चे जरूरी पोषक तत्वों के अभाव में कुपोषण के शिकार हो जाते हैं.

भारत में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी, जो 1 साल से 6 साल के बीच की है, कुपोषण की शिकार है।

अस्वच्छ वातावरण की वजह से होने वाले हरेक वर्ष तक़रीबन ५ वर्ष से कम आयु के १,८६००० बच्चों की मौत को स्वच्छता फैलाकर रोका जा सकता है. विडम्बना ही है कि बढ़ती आय और बेहतर खान-पान के बावजूद भी बच्चों के कुपोषण स्तर जस की तस है.

अगर कचरे की बात करें, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक शहरों में उत्पन्न कचरे का का एक तिहाई हिस्सा सडकों पर पड़ा सड़ता रहता है. अकेले दिल्ली में रोजाना 500 टन अपशिष्ट का सृजन होता है और सालाना 44 लाख से ज्यादा टन हानिकारक अपव्ययों का सृजन होता है। इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ रहे उपयोग के कारण ई- अपव्यय बढ़ रहा है और ताजा आकलनों के अनुसार देश में उत्पादित कुल ई-अपव्यय में से केवल 10 फीसदी की ही रिसाईक्लिंग हो पाती है। मौजूदा नीतियां, कार्यक्रम और प्रबंधन संरचना इस अपशिष्ट के निपटान की भीषण चुनौती का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं करती जिससे 2031 तक 16.5 करोड़ टन तथा 2050 43.6 करोड़ टन हो जाने के आसार हैं।

दुर्भाग्यवश यही स्थिति गंदे पानी को लेकर भी है, कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारम्परिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलू सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन कर देना हमारी आदतों में शुमार है। नालियों और विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा कचरे तथा गंदे पानी का नदियों, नहरों में उड़ेलने का विकल्प ढूंढना अत्यंत जरूरी है.

यदि भारत स्वच्छ होता है तो डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति व्यक्ति वर्ष में साढ़े छह हजार रुपये की बचत होगी क्योंकि स्वच्छता के कारण बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी । विश्व बैंक के एक आँकड़ें के मुताबिक अगर साफ़-सफाई पर एक डॉलर खर्च किया जाए तो स्वास्थ्य और शिक्षा आदि पर खर्च होने वाले नौ डॉलर बचाए जा सकते हैं।

भारत के पर्यटन व्यवसाय पर भी अस्वच्छता का असर साफ़ दिखाई देता है. भारत के गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति को देखने-समझने के लिए बड़ी तादाद में विदेशी पर्यटक भारत आना चाहते हैं, लेकिन गंदगी की वजह से वे यहां आने से कतराते हैं। सिंगापुर, थाइलैंड जैसे देशों की अर्थव्यवस्था उनके पर्यटन के वजह से चल रही हैं, लेकिन हमारे यहां दिन-प्रतिदिन पर्यटक कम होते जा रहे हैं।

साथ ही, अर्थव्यवस्था को मजबूत बंनाने के लिए विदेशी निवेश की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इसके लिए भी स्वच्छता जरूरी है। दुनिया भर में भारत की छवि को सुधारना आवश्यक है.


अभियान की मुख्य बातें :

1986 में कांग्रेस सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम यानी सीआरएसपी की शुरूआत की थी, पर सफल नहीं हो सकीं। सन् 2012 तक सार्वभौमिक घरेलू स्वच्छता के लक्ष्य के साथ 1999 में शुरू की गयी निर्मल ग्राम योजना या निर्मल भारत अभियान यानी एनबीए भी असफल रही. निर्मल भारत अभियान को ही वर्तमान सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान में परिवर्तित  किया है। स्वच्छ भारत अभियान का बजट एनबीए के बजट के तीन गुने के बराबर है. पूरी परियोजना की अनुमानित लागत 1,96,009 करोड़ रुपये है।

स्वच्छ भारत अभियान को दो उप अभियानों में वर्गीकृत किया गया है , स्वच्छ भारत अभियान ( ग्रामीण) और स्वच्छ भारत अभियान (शहरी ).

ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण विकास मंत्रालय हर गांव को अगले पांच सालों तक हर साल 20 लाख रुपये देगा। सरकार द्वारा हर परिवार में व्यक्तिगत शौचालय की लागत 12,000 रुपये तय की गई है. पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा इस अभियान पर 1,34,000 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे ।


शहरी क्षेत्र में हर घर में शौचालय बनाने, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय बनाने, ठोस कचरे का उचित प्रबंधन करने और चुने गए 4,041 वैधानिक कस्बों के 1.04 करोड़ घरों को इसमें शामिल करने की योजना है। जिन क्षेत्रों में घरेलू शौचालय बनाना कठिन है वहां सामुदायिक शौचालय बनाए जाएंगे। सार्वजनिक स्थानों जैसे रेलवे स्टेशन, बाजार, बस अड्डे, पर्यटक स्थलों, धार्मिक-तीर्थ स्थल एवं राष्ट्रीय राजमार्गो पर साफ-सुथरे सार्वजनिक शौचालय तथा पेशाबघर बनाने की बात कही गयी है । महिलाओं के लिए भी पृथक शौचालय बनाने की योजना है,


शहरी विकास मंत्रालय ने इस मिशन के लिए 62,000 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं।

वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार ने एक स्वच्छ भारत कोष की भी स्थापना की है. सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार इस कोष में ऐच्छिक योगदान तथा सीएसआर कोष के तहत चंदा जुटाया जाएगा . नए कंपनी कानून के तहत मुनाफा कमा रही कंपनियों को अपने 3 साल के औसत सालाना शुद्ध लाभ का 2 प्रतिशत निगमित सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) गतिविधियों पर खर्च करना होता है।


स्वच्छ भारत अभियान को सही तरीके से लागू करने के लिए जाने-माने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक रघुनाथ अनंत माशेलकर की अध्यक्षता में 19 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। समिति विभिन्न राज्यों में स्वच्छता और पानी की सुविधा देने के सबसे श्रेष्ठ और आधुनिक तरीकों पर सुझाव देगी और उनमें सुधार के तरीके सरकार को बताएगी।।साथ ही, तकनीक के इस्तेमाल व इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल की दिशा में काम करेगी।


आम आदमी की भागीदारी :

बड़े अफ़सोस की बात है कि हमारे धर्म में स्वच्छता का इतना महत्त्व होते हुए भी हम सार्वजनिक स्थलों की सफाई को नजरअंदाज कर देते हैं। सवाल यह है कि क्या स्वच्छ भारत अभियान केवल सरकार की जिम्मेदारी है? बेशक सरकार अथवा अन्य संस्थाओं के काम करने की अपनी सीमा है।लोगों की ज्यादा-से -ज्यादा भागीदारी ही इस अभियान की सफलता को सुनिश्चित कर सकती है. लोगों में इस भावना की विकास करना होगा कि अपनी मातृभूमि को स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है, स्वच्छता हमारी जरूरत है, यह हमारे जीवन-मरण से जुड़ा मसला है.

सप्ताह में दो घंटे और वर्ष में सौ घंटे सफाई हेतु नागरिकों का श्रमदान के लिए आह्वान इस अभियान के द्वारा किया गया है और आग्रह भी है कि हरेक व्यक्ति कम -से-कम अपने साथ १०० अन्य व्यक्तियों को इस अभियान में शामिल करने का प्रयत्न करें. एक जिम्मेवार नागरिक की भूमिका निभाने के लिए हमें तैयार होना ही होगा, इसका कोई विकल्प नहीं।

क्या होगा सपना साकार?


बेशक सिर्फ अभियान शुरु करना ही काफी नहीं है, परिणाम मायने रखता है. हालांकि स्वच्छ भारत अभियान की डगर बहुत आसान नहीं है. लोगों की आदतों को बदलने से लेकर भ्रष्टाचार तक से निपटना चुनौती है. खासकर अतीत में कुछ योजनाओं की विफलता को देखकर इस अभियान की सफलता पर संदेह वाजिब ही है. गाँवों में बनाये गए शौचालयों का ग्रामवासियों द्वारा इस्तेमाल नहीं किया जाना अच्छे परिणाम का द्योतक नहीं है. इसके अलावा, गाँवों में शौचालय तो बन रहे हैं लेकिन शौचालयों में पानी की व्यवस्था नहीं है । निसंदेह स्वच्छता अभियान को पूर्णत: सफल बनाने के लिए सर्वप्रथम पानी की ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे किसी भी शौचालय को पानी की किल्लत की बजह से बंद होने के कगार पर न आना पड़े.


सवाल यह भी है कि स्वच्छ भारत अभियान के चलते जमा कचरे का निस्तारण कहां और कैसे होगा? यानी कचरा निस्तारण केन्द्रों को भी बढ़ाने की दरकार है । ध्यानयोग्य बात है कि सरकार की नीतियों में कचरा निस्तारण को लेकर गंभीरता नहीं दीखती । इसके अलावा स्वच्छता के मद्देनजर जो अतिरिक्त पूंजी खर्च होगी, उसके बंदोबस्त पर भी अभी पूरी बात स्पष्ट नहीं है।

आशा
इसमें कोई शक नहीं कि काम कठिन है पर दृढ़ संकल्प, लगन और यथोचित प्रयास से लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल भी नहीं है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश ने इसी तरीके को आजमाकर 20 साल की अवधि में खुले में शौच को 34 फीसदी से घटाकर 3 फीसदी कर दिया है। कचरे की रिसाईक्लिंग प्रक्रिया के क्षेत्र में कई कम्पनियाँ काम कर रही है। CII ने भी अपने सदस्यों की मदद से २०१५-१६ में देश भर में १०,००० शौचालयों के निर्माण किये जाने की घोषणा की है वहीँ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ और भारती फाउंडेशन ने विद्यालयों में शौचालय निर्माण हेतु ३००-३०० करोड़ रुपये देने का वादा किया है. ग्रामीण और शहरी विकास मंत्रालयों ने धार्मिक गुरुओं और समूहों जैसे श्री श्री रविशंकर और गायत्री परिवार से स्वच्छ भारत अभियान में शामिल होने का अनुरोध किया है। सरकार और लोगों के प्रयासों से आने वाले वर्षों में भारत निश्चित रूप से वैश्विक मानदंड के अनुरूप एक स्वच्छ देश बन सकेगा।